रात के 11 बजे हैं। दिल्ली का कालकाजी इलाका सन्नाटे में डूबने लगा है। सड़कें खाली हो चुकी हैं और गलियां सुनसान। कुछ देर पहले तक जो इकलौता ढाबा यहां खुला था, उस पर भी अब ताला लटक गया है। एक अंधेरी गली में सिगरेट पीते तीन लड़के पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनते ही अलग-अलग दिशाओं में ओझल हो गए।
चौतरफा फैले सन्नाटे को अपने सायरन से तोड़ती दिल्ली पुलिस की यह गाड़ी ईआरवी कहलाती है। ईआरवी यानी ‘इमर्जेन्सी रेस्पॉन्स व्हीकल।’ ये दिल्ली पुलिस की सबसे मुस्तैद सेवाओं में गिनी जाती है। कोई भी घटना या अपराध होने पर दिल्ली पुलिस की जो टीम सबसे पहले मौके पर पहुंचती है और आधिकारिक कार्रवाई की शुरुआत करती है, वह ईआरवी ही होती है। इनमें हर वक्त ड्राइवर के अलावा एक एएसआई यानी सहायक उपनिरीक्षक और एक कॉन्स्टेबल मौजूद होते हैं।
गाड़ी में तीन सुरक्षा कवच, तीन हेलेमट, दो लाठी, एक वायरलेस सेट, एक माइक और करीब तीस मीटर लंबी एक मोटी-सी रस्सी भी रखी होती है। यह रस्सी इसलिए कि आपात स्थिति में अगर किसी इलाके की घेराबंदी करके उसे सील करना हो तो बाकी संसाधनों के पहुंचने तक इस रस्सी से यह काम किया जा सके। इसके अलावा ईआरवी में तैनात एएसआई के पास अपनी सर्विस पिस्टल और कॉन्स्टेबल के पास तीस राउंड वाली एमपी-5 सब मशीन गन भी रहती हैं।
आपात स्थिति में सबसे पहले प्रतिक्रिया देने के साथ ही लगातार इलाके में गश्त करते रहना भी ईआरवी का मुख्य काम है।सुबह के आठ बजे से रात के आठ बजे तक एक टीम यह जिम्मेदारी निभाती है और रात के आठ बजने पर दूसरी टीम आकर यह मोर्चा अगली सुबह तक के लिए संभाल लेती है।
कालकाजी इलाके में घूम रही इस ईआरवी में आज एएसआई प्रकाश तंवर अपनी टीम के साथ मौजूद हैं। यह गाड़ी एल्लार बीजू चला रहे हैं जो मूलतः केरल के रहने वाले हैं और पीछे बंदूक लिए कॉन्स्टेबल रमेश मालिक बैठे हैं जो करीब 18 साल फौज में नौकरी करने के बाद दिल्ली पुलिस में शामिल हुए हैं।बीते तीन घंटों में इन लोगों ने अपने थाना क्षेत्र के लगभग चप्पे-चप्पे में गश्त का एक राउंड पूरा कर लिया है।
एएसआई प्रकाश तंवर बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते इन दिनों पूरा इलाका सील किया गया है। ऐसे में सिर्फ तीन रास्ते हैं जहां से कोई भी व्यक्ति कालकाजी थाना क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है और इन तीनों जगहों पर उनकी पिकेट (बैरिकेट) लगी हुई हैं जहां उनके साथी तैनात हैं। ऐसी ही एक पिकेट पर पुलिस वाले आती-जाती हर गाड़ी की जांच कर रहे हैं। गाड़ियों में बैठे लोगों के पहचान पत्र और मूवमेंट पास जांचने के लिए उनके पास एक विशेष यंत्र है जिसे आईआईटी के छात्रों ने बनाया है।
सड़क पर तैनात दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों को जरूरत का हर सामान उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी इन दिनों ईआरवी को सौंपी गई है। लिहाजा प्रकाश तंवर जब अपनी ईआरवी के साथ पारस चौक पहुंचते हैं तो यहां तैनात सिपाहियों को गाड़ी से कुछ कोल्ड ड्रिंक्स निकाल कर देने के बाद ही आगे बढ़ते हैं।
लगभग पूरे थाना क्षेत्र में गश्त का एक चक्कर पूरा करने के बाद गाड़ी कुछ देर सुस्ताने के लिए ठहरी है। प्रकाश तंवर अपने साथियों से चर्चा कर रहे हैं कि उन्हें दिल्ली पुलिस में नौकरी करते हुए 35 साल हो चुके हैं लेकिन आज से पहले उन्होंने ऐसा माहौल कभी नहीं देखा। उन्होंने दिल्ली को मंडल आंदोलन के दौरान जलते देखा है, बम धमाकों से उजड़ते देखा है और दंगों में टूटते भी देखा है लेकिन इस कदर सहमे हुए और खामोश कभी नहीं देखा जैसा वो इन दिनों देख रहे हैं।
इन बातों में अपना अनुभव शामिल करते हुए कॉन्स्टेबल रमेश कहते हैं, ‘मैंने 18 साल से ऊपर फौज में नौकरी की। इस दौरान कश्मीर तक में तैनात रहा और कई बार आतंकवादियों से आमने-सामने की मुठभेड़ भी हुई। लेकिन वहां हमें दुश्मन सामने दिखाई तो पड़ता था। इस महामारी में तो दुश्मन दिखता ही नहीं और ये पता तक नहीं चलता कि कौन उसका शिकार हो गया है।’
दिल्ली पुलिस के सौ से ज्यादा जवान अब तक कोरोना से संक्रमित पाए जा चुके हैं और एक जवान की तो मौत भी हो चुकी है। लेकिन विभाग के तमाम लोग पूरी मुस्तैदी से जिम्मेदारी निभा रहे हैं। प्रकाश और उनके साथीबताते हैं कि विभाग की ओर से भी इन दिनों उन्हें जैसा सहयोग और सुविधाएं मिल रही हैं, वह गजब है। न सिर्फ संक्रमण से बचने के लिए जरूरी चीजें बल्कि कई तरह के इम्यूनिटी बूस्टर भी विभाग इन लोगों को दे रहा है।
A member of our family, Ct. Amit made the greatest sacrifice in the fight against COVID. We pay our homage to this great warrior. 🙏🏽🙏🏽 pic.twitter.com/VeD9jOibLS
— #DilKiPolice Delhi Police (@DelhiPolice) May 6, 2020
लॉकडाउन के चलते इन दिनों दिल्ली में अपराध से लेकर सड़क दुर्घटनाएं तक काफी कम हुई हैं। ऐसे में दिल्ली पुलिस का काम भी काफी कम हुआ है लेकिन दूसरी तरफ लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना और प्रवासी मजदूरों को रोकना इन लोगों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
रात के ठीक पौने 12 बजे हैं ईआरवी में लगा वायरलेस सेट पहली बार बजता है। सामने से बताया जाता है कि, ‘कालकाजी मंदिर में राम प्याऊ के पास करीब बीस लड़के रोके गए हैं जो सभी प्रवासी मजदूर हैं और बिहार के लिए पैदल निकले हैं।’ सूचना मिलते ही ईआरवी उस दिशा में बढ़ गई है। जो गाड़ी अब तक गश्त करते हुए 30-40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से तेज नहीं चली थी, अब करीब 90 किलोमीटर/घंटा की रफ्तार से दौड़ने लगती है।
पुलिस को निर्देश हैं कि मजदूरों को किसी भी हाल में पैदल नहीं जाने दिया जाए। यही कारण है कि बीस से ज्यादा मजदूरों के पैदल जाने की खबर सुनते ही प्रकाश तंवर और उनकी टीम बेहद तेजी से उन लोगों को रोकने के लिए कालकाजी मंदिर की तरफ बढ़ गई है।
मौके पर पहुंचते ही ईआरवी टीम के इन सदस्यों ने सभी मजदूरों को उचित दूरी पर बैठा दिया है और इनसे पूछताछ करना शुरू किया है। ये सभी लोग अशोका बिंदुसार कैम्प की झुग्गियों से आए हैं और बिहार के कटिहार जाना चाहते हैं। पूछने पर ये मजदूर बताते हैं कि इन्हें दो वक्त का खाना भी अब नसीब नहीं हो रहा और झुग्गी मालिक किराए के लिए भी परेशान कर रहा है लिहाजा पैदल ही अपने घर-गांव लौटने को अब ये मजबूर हैं।
लेकिन इन्हें पैदल जाने की अनुमति देना प्रकाश तंवर और उनके साथियों के लिए मुमकिन नहीं है। वे इन लोगों को समझाते हैं, कहते हैं वापसी के लिए कुछ समय इंतजार करना होगा। कालकाजी थाने के इन्स्पेक्टर संदीप घाई भी मौके पर पहुंच चुके हैं और इन मजदूरों को किसी शेल्टर होम में भेजने के लिए एक बस बुलवा ली और इस तरह से बिहार के लिए पैदल निकले इन लोगों का सफर एक सराय में पहुंच कर खत्म हो गया है।
इन प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाने की प्रक्रिया निपटाते हुए रात के करीब दो बज चुके हैं। इन्स्पेक्टर वापस लौट चुके हैं और ईआरवी एक बार फिर सड़कों पर गश्त करने लगी है। उन्हें यह काम पूरी रात करना है और लगातार करना है।
कई बार ऐसा भी होता है दिल्ली की सड़कों पर ईआरवी में पुलिस वाले सोते हुए दिखाई देते हैं। इस बारे में प्रकाश कहते हैं, ‘इन दिनों अदालतें और अन्य सभी विभाग बंद हैं तो हमारा काम आसान है। वरना कई बार तो ऐसा होता है कि हम सुबह आठ बजे ड्यूटी से वापस लौटते हैं और सुबह दस बजे कोर्ट जाना होता है। कभी किसी मुजरिम को लेकर तो कभी गवाही पर। कई बार कोर्ट में शाम के चार-पांच तक बज जाते हैं और फिर आठ बजे दोबारा ड्यूटी होती है। ऐसे में अगर कोई पुलिस वाला झपकी लेता दिखे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। वो भी आखिर इंसान ही है।’
सुबह पांच बजने पर प्रकाश और उनकी टीम की ड्यूटी का अंतिम पड़ाव करीब आने लगता है। इस वक्त स्थानीय लोग सैर के लिए निकलते हैं तो ईआरवी की जिम्मेदारी होती है कि पार्क और मैदानों में घूमने आ रहे लोगों की सुरक्षा में कोई सेंध न हो। ऐसे में यही टीम सभी पार्कों की सुरक्षा व्यवस्था भी जांचती है।
आठ बजे तक आम नागरिकों की दिनचर्या जब पटरी पर आती है, तब ईआरवी की यह टीम इलाके की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा अपनी दूसरी टीम के हवाले कर वापस लौटती है। इन दिनों तो इन लोगों को वापस अपने घर लौटना भी नसीब नहीं है क्योंकि इससे इनके परिवार को भी संक्रमण का खतरा हो सकता है। लिहाजा इन दिनों पुलिस के सैकड़ों जवान या तो बैरक में रह रहे हैं या अपने थाना क्षेत्र के किसी होटल में ये रात गुजार रहे हैं ताकि अगली सुबह एक बार इस महामारी से लड़ने के लिए तैनात हो सकें।
कल संभाले हुए थे इन रास्तों को।
— #DilKiPolice Delhi Police (@DelhiPolice) May 8, 2020
आज डटे हुए हैं, बन के आपका रक्षक।
और रोके हुए हैं एक क़यामत को। #दिल_की_पुलिस #DilKiPolice pic.twitter.com/MOV4oWLP5x
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