उत्तर प्रदेश के कानपुर से करीब 40 किमी दूर बेहटा बुर्जुग स्थित है। ये भीतरगांव विकास खंड के अंतर्गत आता है। यहां एक ऐसा मंदिर स्थित है जो मानसून की भविष्यवाणी करता है। करीब एक हजार साल पुराने मंदिर की बनावट कुछ ऐसी है कि बारिश होने से 5-7 दिन पहले ही इसकी छत से बूंदे टपकने लगती हैं। मंदिर का निर्माण एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। इस पर कई रिसर्च हो चुकी हैं।
मंदिर के पुजारी केपीशुक्ला ने बताया कि यहां भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की छत पर मानसून पत्थर लगा हुआ है। इस पत्थर से टपकने वाली बूंदों से अंदाजा लग जाता है कि बारिश कैसी होगी। अगर ज्यादा बूंदे टपकती हैं तो ज्यादा बारिश होने की संभावनाएं बनती हैं। ये कोई कोरी मान्यता नहीं है, इसमें पूरा विज्ञान है। मंदिर बनाते समय ही संभवतः इस बात को ध्यान में रखा गया होगा। मंदिर की दीवारों और छत को इस तरह से बनाया गया है कि ये मानसून शुरू होने के 5-7 दिन पहले काम करना शुरू कर देती हैं।
15 फीट चौड़ी हैं दीवारें
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, लखनऊ के सीनियर सीए मनोज वर्मा ने बताया कि ये मंदिर कई बार टूटा और बना है। यहां कई लोगों ने रिसर्च की है। अधिकतर रिसर्च का अनुमान है कि ये मंदिर 9वी-10वीं सदी के आसपास का है। मंदिर की दीवारें करीब 15 फीट चौड़ी हैं। मंदिर को बनाने में चूना-पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। बारिश से पहले मौसम में उमस बढ़ने लगती हैं, जिससे चूना वातावरण से नमी ग्रहण करता है।
ये नमी पत्थर तक पहुंचती है और पत्थर से पानी की बूंदें बनकर टपकने लगती हैं। जब भी वातावरण में उमस बढ़ती है, तो बारिश होती है। इसी वजह से इस मंदिर को मानसून मंदिर कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह की छत पर लगे पत्थर को मानसून पत्थर कहा जाता है क्योंकि इसी से पानी टपकता है। हालांकि, ये पत्थर किसी विशेष प्रजाति का नहीं है, ये सामान्य पत्थर ही है।
तीन भागों में बना है मंदिर
भीतरगांव के विकास खंड अधिकार सौरभ बर्णवाल ने बताया कि ये मंदिर तीन भागों में बना हुआ है। गर्भगृह का एक छोटा भाग है और फिर बड़ा भाग है। ये तीनों भाग अलग-अलग काल में बने हैं। यहां भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापित है। यहां विष्णु के 24 अवतारों की, पद्मनाभ स्वामी की मूर्ति स्थापित हैं।
मंदिर के इतिहास को लेकर मतभेद
मंदिर की देखरेख करने वाले केपीशुक्ला ने बताया कि मंदिर के इतिहास को लेकर कई मतभेद हैं। पुराने समय में अलग-अलग राजाओं ने मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया है। यहां कुछ खंडित मूर्तियां हैं, उनकी शैली बहुत ही प्राचीन समय की है। मंदिर के निर्माण को लेकर कहीं भी कोई लिखित प्रमाण नहीं है। मंदिर में प्रवेश करते समय दक्षिण में एक विशेष मूर्ति है। कुछ लोग इसे विष्णुजी की मानते हैं और कुछ लोग इसे शिवजी की मूर्ति मानते हैं। इस तरह की प्रतिमाएं लगभग दो हजार साल पहले बनाई जाती थी।
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