प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया है। भास्कर ने आम आदमी के काम से जुड़े 6 प्रमुख सेक्टर्स में स्वदेशी कंपनियों की स्थिति जानी। टेलीकॉम और एफएमसीजी जैसे सेक्टर्स में जहां भारतीय कंपनियां आगे हैं, वहीं मोबाइल हैंडसेट और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के क्षेत्र में मल्टीनेशनल कंपनियों का बोलबाला है।
इस स्थिति पर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर राम सिंह कहते हैं कि आत्मनिर्भर भारत संभव है। पेट्रोलियम प्रोडक्ट, गूगल, फेसबुक जैसी टेक कंपनियां आदि को छोड़ दिया जाए तो हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं। जापान, जर्मनी जैसे देश भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के मामले में विदेशी प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि विश्व बाजार में अभी भी हमारे उत्पाद ब्रान्डिंग के मामले में पीछे हैं। हमारे देश के छोटे और मध्यम उद्योग भी वैश्विक फलक पर आ पाएं, इसीलिए इनकी कारोबार की सीमा सौ करोड़ रुपए तक की गई है। आत्मनिर्भरता का अर्थ यह नहीं है कि हम विदेशी पूंजी निवेश या एमएनसी के खिलाफ हैं।
'देशी ब्रांड या उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए'वहीं, ई-कॉमर्स कंपनियों को सलाह देने वाली कंपनी टैक्नोपैक कंसल्टिंग के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट अंकुर बिसेन कहते हैं कि देशी कंपनियों के मुकाबले मल्टी नेशनल कंपनियां डिविडेंट और रॉयल्टी अवश्य विदेश ले जाती हैं, लेकिन वह 10-15 फीसदी से अधिक नहीं होता है। ऐसे में देशी ब्रांड या उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, लेकिन इस हकीकत को भी हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि मोबाइल मैन्यूफेक्चरिंग या कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के क्षेत्र में विदेशी कंपनियां, देशी कंपनियों से कारोबार में कहीं आगे हैं।
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स्रोत:आंकड़े इनवेस्ट इंडिया, टैक्नोपैक, इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन, सियाम, सीओएआई, ट्राई, विभिन्न कंपनियों के घोषित रिजल्ट्स और विशेषज्ञों के मुताबिक हैं।
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