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शुक्रवार, 22 मई 2020
आजादी के बाद हो रहे इस सबसे बड़े पलायन की असलियत और उससे वास्ता रखने वाली मार्मिक कहानियों की चुनिंदा तस्वीरें
मई के पहले हफ्ते से ही महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत बाकी राज्यों के लिए प्रवासियों का पलायन तेज हो गया था। इनमें ज्यादातर मजदूर थे। अखबारों, टीवी चैनलों और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भूखे, पैदल चल रहे, ट्रक-टेंपों में लदे इन प्रवासियों की तस्वीरें आने लगीं थीं।
दैनिक भास्कर पिछले पांच दिनों से इन प्रवासियों के पलायन की कहानियां आप तक पहुंचा रहा था। सीधे वहां से, जिस रास्ते सबसे ज्यादा प्रवासी महाराष्ट्र से निकलकर बाकी राज्यों में अपने घर पहुंच रहे हैं।
कोशिश यही थी कि शायद आजादी के बाद हो रहे इस सबसे बड़े पलायन की असलियत और उससे वास्ता रखने वाली मार्मिक कहानियों से आप भी वाकिफ हो सकें।
इसी लक्ष्य के साथ 17 मई की दोपहर 1 बजे मुंबई के ढाणे से हमारा सफर शुरू हुआ। नासिक हाईवे होते हुए महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश बॉर्डर पार की और फिर इंदौर, झांसी और प्रयागराज होते हुए हम बनारस पहुंचे।
1500 किमी से ज्यादा के सफर में 100 घंटे तक लाइव रिपोर्टिंग और 16 रिपोर्ट्स के जरिए आपको सीधे उस हाईवे और उन प्रवासियों के गांवों तक पहुंचाने की कोशिश की। इस सफर में हमनें कुछ तस्वीरें लीं, उन्हें इस फोटो स्टोरी में साथ जुटाया है-
सफर की शुरुआत में नासिक हाईवे पर खारेगांव टोल पर हमें दोपहर करीब 2 बजे 1500-2000 प्रवासी मजदूरों की भीड़ दिखी थी। इस जगह से महाराष्ट्र सरकार इन्हें महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश बॉर्डर तक छोड़ रही थी। भीड़ में हमारी नजर एक महिला पर पड़ी जो सुबह 4 बजे से अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं। इनके पति एक और बच्चे को गोद में लिए लाइन में खड़े थे। पूछने पर महिला ने बताया था कि पता चला कि यहां से सरकार बसों से छोड़ रही है तो हम भी यहां आ गए।
नासिक हाईवे पर कसारा गांव में पेड़ के नीचे आराम करती एक टोली मिली। 29 लोगों का यह ग्रुप साइकिल से ही असम के लिए निकला है। साइकिलें जब नई नजर आईं तो पूछने पर बताया कि साधन कुछ था ही नहीं तो घर से पैसे बुलवाए और 5-5 हजार की साइकिलें खरीदीं। अब इन्हीं से हर दिन 90 किमी चलते हैं। ऐसे ही चलते रहे तो एक महीने में अपने गांव पहुंच जाएंगे।
यह परिवार नवी मुंबई के पास स्थित तलोजा इलाके से चार दिन पैदल चलकर रविवार की शाम 7 बजे के करीब धुले जिले के एमआईडीसी पहुंचा। इन्हें इसी तरह सफर करते हुए छत्तीसगढ़ के राजनंद गांव जाना है।
नासिक नाके पर महाराष्ट्र पुलिस प्रवासियों को ट्रकों से निकालकर लाइन में खड़ी करती है फिर इन्हें बस में बिठाकर महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश बॉर्डर पर छोड़ा जा रहा है। यहां हमें एक पिता अपनी बेटी को गोद में उठाए बस में बैठने की अपनी बारी का इंतजार करते हुए नजर आए।
महाराष्ट्र- मध्यप्रदेश बॉर्डर पर यह तस्वीर रात 12 बजे ली गई है। यहां बड़ी बिजासन माता मंदिर पर 4 से 6 हजार लोगों की भीड़ थी। महाराष्ट्र से आए प्रवासी यहां अपने-अपने राज्यों के पोस्टर के सामने बस के इंतजार में बैठे हुए हैं।
बिजासन माता मंदिर पर हमारी मुलाकात प्रवीण से हुईं। प्रवीण गर्भवती हैं और हाल ही में नवां महीना लगा है। पिछले दो दिन वे अपने पति के साथ अलग-अलग ट्रकों से होते हुए यहां पहुंची थीं। प्रवीण ने बताया था कि मैंने सुबह से पानी तक नहीं पिया है। क्योंकि पानी पीने से पेशाब आता है और फिर आंतों में दर्द होता है। खाना और आराम नहीं मिलने के कारण ऐसा हो रहा है। बस अब जल्द से जल्द घर पहुंचने का इंतजार कर रही हूं।
शिवपुरी हाईवे पर हमें एक के बाद महाराष्ट्र के कई ऑटो नजर आए। ऑटो वाले अपने परिवार को लेकर यूपी-बिहार के अपने गांवों की ओर बढ़ रहे थे। सफर में बैठे-बैठे जब ये थक जाते हैं तो कुछ देर बाहर निकलकर चहलकदमी कर लेते हैं।
झांसी पहुंचने से ठीक पहले हमें 8 लोगों की यह टोली मिली। ये युवा हैदराबाद से कभी पैदल तो कभी ट्रकों के सहारे आगे बढ़ रहे हैं। इन्हें यूपी के महोबा जाना है। बुंदेलखंड की भयानक गर्मी के बीच इनके पास न तो पैसे थे, न खाने के लिए कुछ बचा था। कह रहे थे कि 6-6 घंटे बिना पानी के भी चले हैं। 3 दिन से नहाए भी नहीं हैं।
तस्वीर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को जोड़ती रक्सा बॉर्डर की है। प्रवासी अपने जिले की बस आने का इंतजार कर रहे हैं। यहां से हर दिन 300 से 400 बसों में मजदूरों को बैठाकर गोरखपुर, वाराणसी और जौनपुर सहित सूबे के अलग-अलग जिलों में छोड़ा जाता है।
झांसी में बांगड़ गांव के करीब हमें एक यह नजारा भी दिखा। सब इंस्पेक्टर बृजेश कुमार सिंह ने उल्हासनगर से मऊ होते हुए इलाहाबाद जा रहे मजदूरों की गाड़ी खड़ी देखी तो उतरकर उनका हालचाल पूछा। उन्होंने वहां जमा लोगों से खाना-पानी का भी पूछा। हमसे बात करते हुए उन्होंने बताया कि इस रास्ते रोज ढेरों मजदूरों से भरी गाड़ियां जाती हैं। ये लोग बड़ी परेशानीभरा सफर कर रहे हैं। अगर मैं इनकी कुछ मदद कर सकता हूं तो इसीलिए पूछ लेता हूं।
हाईवे के नजदीक झांसी के देवरीसिंहपुरा गांव में दामोदर अपनी पत्नी का दाह संस्कार कर लौटे हैं। बताते हैं कि गाड़ियां नहीं थी तो 25 किलोमीटर पैदल चलकर अपने साली के यहां आ रहे थे। रास्ते में ही ट्रक ने टक्कर मार दी और पत्नी की मौत हो गई। दामोदर के दो बच्चे हैं। दस साल की बेटी नीलम और 14 साल का बेटा दीपक।
बनारस की ओर बढ़ते हुए एक जगह हमें कई मजदूर आराम करते नजर आए। यहां हम अजीम से मिले। अजीम महोबा के रहने वाले हैं। वे गुड़गांव से अपनी पत्नी को साइकिल पर बैठाकर गांव की ओर बढ़ रहे थे। साइकिल के पीछे इन्होंने लंबा सा प्लाय का टूकड़ा बांध रखा था ताकि पत्नी के साथ-साथ कुछ सामान भी पीछे रख सकें।
श्याम लाल और दिनेश आर्य हरिद्वार से अपने गांव रानीपुर लौटे हैं। घर में पुरानी जंग लगी लूम की मशीनों को दिखाते हुए वे कहते हैं कि कभी हम भी सेठ हुआ करते थे। पहले रानीपुर के घर-घर में बुनकर हुआ करते थे, फिर पुरा कामकाज ठप होने लगा और हम मजदूरी करने बाहर चले गए। अब गांव फिर से लौटे हैं, पता नहीं अब क्या होगा।
बनारस के रुस्तमपुर गांव में बाहर से 45 लोग लौटे हैं। तस्वीर में दिख रहे स्कूल में 4 लोगों को क्वारैंटाइन किया गया है। बाकी होम क्वारैंटाइन में हैं। जो लोग क्वारैंटाइन हैं उनके परिवार वालों से बातचीत की तो पता चला कि जब भी ये लोग स्कूल में खाना देने जाते हैं तो गांव वाले इन्हें गालियां देते हैं।
दिनेश मुंबई के मलाड में रहते थे जहां आरओ फिटिंग का काम करते थे। गांव लौटने पर गांववालों और परिवार वालों ने 14 दिन तक दूर रहने को कह दिया। तभी से दिनेश अपने खेत में मचान बनाकर क्वारैंटाइन में रह रहे हैं।
गुजरात के मेहसाणा से लौटे कुलदीप निषाद उर्फ कल्लू पिछले 9-10 दिनों से गंगा किनारे एक नाव पर क्वारैंटाइन हैं। वे बताते हैं कि दिन में जब धूप सहन नहीं होती है, तो नाव को पास के बड़े से पीपे के नीचे ले जाते हैं, वहां थोड़ी छांव रहती है।
बाहर से लौटे लोगों ने कहीं नदी किनारे, कहीं खेतों में, तो कहीं मसानों में अपनी झोपड़ियां बनाई हैं। इन्हीं झोपड़ियों में इन्हें पूरे 14 दिन क्वारैंटाइन रहना है। तस्वीर कैथी घाट पर बनी एक क्वारैंटाइन झोपड़ी की है। इसमें संजीत सिंह रहते हैं जो आगरा से लौटे हैं।
हमारा सफर प्रधानमंत्री के गोद लिए हुए गांव "जयापुर" में खत्म हुआ। गांव में 35 लोग बाहर से लौटे हैं, जिन्हें होम क्वारैंटाइन किया गया है। यहां एक निगरानी समिती बनाई गई है जो नजर रखती है कि कोई क्वारैंटाइन के नियमों का उल्लंघन तो नहीं कर रहा।
बंबई से बनारस तक मजदूरों के साथ भास्कर रिपोर्टरों के इस 1500 किमी के सफर की बाकी खबरें यहां पढ़ें:
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