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रविवार, 26 जुलाई 2020
कैप्टन बत्रा तो कहकर गए थे कि या तो तिरंगा फहरा के आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर, कैप्टन अनुज ने कहा था- जब तक आखिरी दुश्मन है, मैं सांस लेता रहूंगा
आज का दिन हम सभी भारतीयों के लिए गौरव का दिन है, शौर्य दिवस है, विजय दिवस है। ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई 1999 को भारतीय जांबाजों ने करगिल फतह किया था और पाकिस्तान को पटखनी दी थी। करीब दो महीने तक चले युद्ध में भारत के 527 जवानों ने अपनी शहादत दी थी। आज देश इन अमर जवानों की शहादत को नमन कर रहा है, उनकी शौर्य गाथा का गुणगान कर रहा है। इस मौके पर पढ़िए करगिल के 10 शूरवीरों की कहानी.....
1. कैप्टन सौरभ कालिया
कैप्टन सौरभ कालिया करगिल वॉर के पहले शहीद थे। उनके साथ 5 और जवानों ने भी कुर्बानी दी थी। दरअसल 3 मई 1999 को एक चरवाहे ने करगिल की ऊंची चोटियों पर कुछ पाकिस्तानी सैनिकों को देखा और इंडियन आर्मी को जानकारी दी। इसके बाद 15 मई को कैप्टन कालिया अपने 5 जवानों के साथ बजरंग पोस्ट की ओर निकल पड़े। वहां उन्होंने दुश्मनों से जमकर मुकाबला किया।
लेकिन, जब उनके एम्युनेशन खत्म हो गए तो पाकिस्तान ने उन्हें बंदी बना लिया। इस दौरान पाकिस्तानियों ने उन्हें कई तरह की यातनाएं दी और अंत में गोली मारकर हत्या कर दी। 22 दिन बाद 9 जून को कैप्टन कालिया का शव भारत को पाकिस्तान ने सौंपा था। उस समय उनके चेहरे पर न आंखें थीं न नाक-कान थे। सिर्फ आईब्रो बची थी जिससे उनकी बॉडी की पहचान हुई।
कैप्टन विक्रम बत्रा एक ऐसा योद्धा जिससे दुश्मन कांपते थे, एक ऐसा योद्धा जिसकी बहादुरी की दुश्मन भी तारीफ करते थे, एक ऐसा योद्धा जो एक चोटी पर तिरंगा फहराने के बाद कहता था ' ये दिल मांगे मोर' और दूसरे मिशन के लिए निकल पड़ता था। विक्रम बत्रा की 13 जम्मू एंड कश्मीर रायफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर ज्वाइनिंग हुई थी। दो साल के अंदर ही वो कैप्टन बन गए।
करगिल के दौरान उन्होंने 5 पॉइंट्स को जीतने में अहम भूमिका निभाई थी। लड़ाई के दौरान उन्होंने खुद की जान की परवाह किए बिना कई साथियों को बचाया था। 7 जुलाई 1999 को एक साथी को बचाने के दौरान उन्हें गोली लग गई और वे शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उनके बारे में तब के इंडियन आर्मी चीफ वीपी मलिक ने कहा था कि अगर वो जिंदा वापस आते तो एक दिन मेरी जगह लेते।
3. सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव
सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव की बहादुरी की कहानी बड़ी दिलचस्प है। उन्होंने महज 19 साल की उम्र में 17 हजार फीट ऊंची टाइगर हिल को पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ाया था। युद्ध के दौरान योगेंद्र को 15 गोलियां लगी थीं, ये बेहोश हो गए थे। पाकिस्तानियों को लगा इनकी मौत हो गई है।
लेकिन, कन्फर्म करने के लिए दो गोलियां और दाग दी, फिर भी ये बच गए। उसके बाद उन्होंने 5 पाकिस्तानियों को मारा था। योगेंद्र को उनकी बहादुरी के लिए सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
मेजर राजेश सिंह का जन्म 25 दिसंबर 1970 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था। 11 दिसंबर 1993 को वे इंडियन मिलिट्री अकेडमी से ट्रेनिंग के बाद इन्फेंट्री रेजीमेंट का हिस्सा बने। करगिल युद्ध के दौरान वे 18 ग्रेनेडियर का हिस्सा थे। 29 मई 1999 को भारतीय फौज ने तोलोलिंग पर कब्जा कर लिया था।
इसके बाद 30 मई को मेजर राजेश अधिकारी की टीम को तोलोलिंग से आगे की पोस्ट को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने की जिम्मेदारी मिली। राजेश अपनी टीम को लीड कर रहे थे। इस दौरान उन्हें गोली लगी लेकिन उन्होंने पीछे जाने से इनकार कर दिया। गोली लगने के बाद भी वे लड़ते रहे और तीन दुश्मनों को मार गिराया।
30 मई 1999 को वे शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत दूसरे सर्वोच्च भारतीय सैन्य सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था
5. मेजर विवेक गुप्ता
मेजर विवेक गुप्ता का जन्म देहरादून में हुआ था। उनके पिता कर्नल बीआरएस गुप्ता फौजी थे। एनडीए की परीक्षा पास करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग 13 जून 1992 को 2 राजपूताना राइफल्स में हुई।करगिल युद्ध के दौरान उनकी टीम को प्वाइंट 4590 को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने की जिम्मेदारी मिली।
12 जून को उनकी टीम रवाना हो गई। दुश्मन ऊंचाई पर थे, उन्हें पता चल गया कि भारतीय फौज आ गई है। दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई। मेजर गुप्ता को दो गोलियां लगी लेकिन उसके बाद भी उन्होंने तीन दुश्मनों को मार गिराया और पाकिस्तान के कई बंकरों को तबाह कर दिया। 13 जून 1999 को मेजर विवेक गुप्ता शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
6. मेजर डीपी सिंह
मेजर डीपी सिंह एक ऐसा योद्धा जिसने कभी हार मानना स्वीकार नहीं किया। उनके जुनून और जज्बे के सामने पहाड़ सी मुश्किलें भी छोटी पड़ गईं। करगिल युद्ध के दौरान वो बुरी तरह घायल हो थे। उनका एक पैर बुरी तरह जख्मी हो चुका था, बाकी शरीर पर 40 से ज्यादा घाव थे।
शरीर से खून के फव्वारे उड़ रहे थे। अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया लेकिन, फिर भी वो बच गए। आज वे ब्लेड रनर नाम से पूरी दुनिया में फेमस हैं। चार बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
कैप्टन मनोज पांडे का जन्म यूपी के सीतापुर जिले में 25 जून 1975 को हुआ था। 12 वीं के बाद उन्होंने एनडीए की परीक्षा पास की और ट्रेनिंग के बाद 11 गोरखा राइफल्स में पहली पोस्टिंग मिली। करगिल युद्ध के दौरान उन्हें 3 जुलाई 1999 को खालुबार चोटी पर कब्जा करने का टारगेट मिला।
चोटी पर पहुंचने के बाद उन्होंने पाकिस्तानियों के साथ जमकर मुकाबला किया और एक के बाद एक कई दुश्मनों को मार गिराया। इस दौरान उन्हें गोली लग गई लेकिन उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अंतिम सांस लेने से पहले पाकिस्तान के चार बंकरों को तबाह कर दिया। 3 जुलाई 1999 को वे शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया।
8. कैप्टन नवीन नागप्पा
कैप्टन नवीन नागप्पा करगिल युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गए थे। करीब 21 महीने दिल्ली अस्पताल में भर्ती रहे। इस दौरान 8 सर्जरी हुई। उसके बाद उन्हें सर्विस के लिए मेडिकली अनफिट बता दिया गया। वे सिर्फ 6 महीने ही सर्विस में रह सके थे। इसके बाद उन्होंने 2002 में इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज की परीक्षा पास की। आज वे मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस में बैंगलुरू के आर्मी बेस कैम्प में आज सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हैं।
अनुज नैय्यर का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था। पिता एस के नैय्यर दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे जबकि उनकी मां दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस की लाइब्रेरी में काम करती थीं। 12 वीं के बाद अनुज ने एनडीए की परीक्षा पास की और ट्रेनिंग के बाद 17 जाट रेजीमेंट में भर्ती हुए। करगिल के दौरान अनुज ने दुश्मनों से जमकर मुकाबला किया।
पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराने में अनुज ने अहम भूमिका निभाई। महज 24 साल की उम्र में अनुज ने पाकिस्तान के कई बंकरों को तबाह कर दिया और अकेले 9 दुश्मनों को मार गिराया। 7 जुलाई 1999 को अनुज शहीद हो गए। उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। अनुज के बारे में एक दिलचस्प कहानी है।
अनुज की सगाई हो गई थी, जल्द ही उनकी शादी भी होने वाली थी। जब वे करगिल में लड़ाई के लिए जा रहे थे तो उन्होंने अपनी अंगूठी अपने कमांडिंग ऑफिसर को यह कहते हुए दे दिया कि अगर मैं नहीं लौटूं यह रिंग मेरी मंगेतर तक पहुंचा दीजिएगा। उन्होंने कहा था कि मैं नहीं चाहता कि मेरी यह अंगूठी दुश्मन के हाथ लगे।
10. कैप्टन विजयंत थापर
कैप्टन विजयंत थापर का जन्म 26 दिसंबर 1976 में हुआ था। उनका फैमिली बैक ग्राउंड आर्मी से था। परदादा डॉ. कैप्टन कर्ता राम थापर, दादा जेएस थापर और पिता कर्नल वीएन थापर सब के सब फौज में थे। दिसंबर 1998 में कमीशन के बाद 2 राजपूताना राइफल्स में पोस्टिंग मिली।
एक महीना ग्वालियर रहे और फिर कश्मीर में एंटी इंसर्जेंसी ऑपरेशन के लिए चले गए। करगिल युद्ध में उन्हें तोलोलिंग पर कब्जा करने का टारगेट मिला। उन्होंने पाकिस्तान के कई बंकर तबाह कर दिया। लंबी लड़ाई चली और 13 जून 1999 को तोलोलिंग पर भारत ने कब्जा किया। यह भारत की पहली जीत थी।
इसके बाद उन्हें 28 जून 1999 को नोल एंड लोन हिल पर ‘थ्री पिंपल्स’ से पाकिस्तानियों को खदेड़ने की ज़िम्मेदारी मिली। इस युद्ध में भारत ने अपने कई सैनिकों को खोया, लेकिन 29 जून को हमारी फौज ने थ्री पिंपल्स पर तिरंगा फहराया था। कैप्टन थापर 29 जून 1999 को शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र दिया गया था।
विजयंत ने अपने परिवार को लिखे आखिरी खत में कहा था कि मैं जहां लड़ रहा हूं उस जगह को आकर जरूर देखना। बेटे की बात रखने के लिए आज भी उनके पिता हर साल उस जगह पर जाते हैं जहां विजयंत ने आखिरी सांसें ली थी।
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