पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सीमा यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 29 और 30 अगस्त की रात भारतीय सैनिकों ने बड़ी जीत हासिल की है। उन्होंने एलएसी पर पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही चीनी सेना को न केवल रोका बल्कि पैंगॉन्ग सो झील के दक्षिणी किनारे पर चोटियों पर पोजिशन भी ले ली है। इन चोटियों पर कब्जा करने का भारतीय सेना और देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्व है और इसे ही समझा रहे हैं रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ-
पिछले दिनों भारत ने चीन को पैंगॉन्ग सो झील के दक्षिणी किनारे के पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा करने से रोका है। अब सवाल यह उठता है कि इन चोटियों का क्या महत्व है? दरअसल, पैंगॉन्ग सो झील इलाके की बनावट ऐसी है कि जो भी सेना दक्षिणी किनारे के पास के इन पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा कर लेती है, वह पूरे इलाके पर प्रभुत्व रखती है।
यदि आपका इन चोटियों पर कब्जा है तो आप वहां से कई मील दूर तक नजर रख सकते हैं। यहां होना हमारी मिलिट्री के लिए बहुत बड़ा एडवांटेज है। हम यहां से न केवल चीनी सेना की हरकतों पर नजर रख सकते हैं, बल्कि उसे दुस्साहस करने या आगे बढ़ने से रोकने के लिए समय पर कार्रवाई कर सकते हैं।
यही कारण है कि चीनी सेना जल्द से जल्द इन चोटियों पर कब्जा कर लेना चाहती थी। लेकिन, इसकी भनक हमारी सेना को लग गई और हमारी सेना ने समय रहते उनसे पहले चोटियों पर कब्जा कर लिया। यह हमारी सेना का सही समय पर और साहसिक एक्शन था।
सर्दियों में इस इलाके में जाना बेहद मुश्किल
हर साल हम देखते हैं कि हमेशा गर्मियों में ही एलएसी के विवादित हिस्से पर दोनों सेनाओं के बीच झड़प या टकराव होता है। दरअसल, सर्दियों में यह इलाके पूरी तरह से बर्फ से ढंके होते हैं। इससे इन इलाकों में पहुंच पाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन दुष्कर जरूर हो जाता है।
इस वजह से इस तरह के ऑपरेशंस के लिए गर्मियों का ही वक्त रहता है। यह समय भी जल्द खत्म होने ही वाला है। जिस तरह की परिस्थिति बन रही है और गतिविधियां चल रही है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि दोनों सेनाओं को अपनी यूनिट्स को लॉजिस्टिक सपोर्ट देना होगा।
फिलहाल एडवांटेज हमारी सेना के पास
इस समय तो हमारी सेना के पास एडवांटेज है, क्योंकि हमारे ज्यादातर सैनिक लद्दाख में पोजिशन लेकर बैठे हैं। हमने सर्दियों के लिए लॉजिस्टिक सप्लाई भी पहुंचा दिया है। चीनी सैनिक आम तौर पर गर्मियों के बाद पीछे हट जाते हैं। वे अब भी डटे हुए हैं तो उन्होंने सर्दियों के लिए रसद की व्यवस्था कर ली होगी या कर रहे होंगे।
इसी तरह हमारे सैनिक इन ऊंचाइयों के आदी हैं। यह हमारी सेना के लिए एडवांटेज है। चीन इस मुद्दे को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि एक तरफ तो वह बातों में उलझाने की कोशिश कर रहा है और दूसरी तरफ नए ठिकाने से टकराव की कोशिश कर रहा है।
सबसे बड़ी महाशक्ति बनना चाहता है चीन
चीन के मंसूबे साफ है। उसे 2049 तक अमेरिका की जगह लेनी है। यानी महाशक्ति के रूप में स्थापित होना है। यह शांतिपूर्ण तरीके से हो ही नहीं सकता। इस वजह से उसने बेशर्म और बेरहम हथकंडे अपनाने शुरू किए हैं। चीन ने कई देशों के साथ मोर्चे खोल रखे हैं, जैसे- जापान, अमेरिका, दक्षिण चीन सागर के छह दक्षिण-पूर्वी देश। उसके घर में ही हांगकांग, झिन्जियांग और तिब्बत जैसे विवादित मसले हैं। ताईवान एक कॉमन डिनॉमिनेटर रहा है। भारत के साथ उसका विशेष रिश्ता है।
भारत को छोड़ किसी से सीमा का संघर्ष नहीं बचा
चीन की सीमा 14 देशों से सटी हुई है। उसने भारत को छोड़कर बाकी सभी देशों से सीमा को लेकर मुद्दे सुलझा लिए हैं। भारत और चीन कई मामलों में प्रतिस्पर्धी हैं, फिर चाहे बात इकोनॉमी की हो, महासागर की या रीजनल ऑर्डर, अंतरिक्ष, साइबर, मल्टीनेशनल अरेंजमेंट्स और सबसे महत्वपूर्ण पीओके और अक्साई चिन की। भारत के साथ अनसुलझा सीमा विवाद प्रेशर पॉइंट बन जाता है? हर तीन-चार साल में कोई न कोई झड़प हो ही जाती है- 2013 में देपसांग, 2014 में चुमार, 2017 में दोलाम प्लेट्यू।
अब, भारत किसी से डरने वाला नहीं है
और इन गर्मियों में चीन ने क्या किया? टेक्टिकल लेवल पर, चीन ने सीमा पर हमारे इलाके में सड़क बनाने पर आपत्ति उठाई। वहीं, खुद के इलाके में सड़कों का जाल बिछा दिया। इससे उसके पास अपनी सेना को जल्द से जल्द कहीं भी पहुंचाना आसान हो गया है।
भारत ने बहुत बाद में यानी करीब 2005 में सड़कें बनाने का काम शुरू किया था। चीन नहीं चाहता कि मोबिलिटी का यह अंतर खत्म हो। पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम और झड़पों को दोहराए बिना यह कहना तार्किक होगा कि चीन को समझ आ गया है कि भारत उसकी गीदड़-भभकियों में आने वाला नहीं।
भारत ही दिखा रहा है चीन के खिलाफ आक्रामकता
दक्षिण चीन सागर से सेनकाकु द्वीपों तक, हांगकांग से झिंजियांग तक, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापारिक युद्धों से लेकर समुद्र को आजाद करने के मुद्दे तक, बहुत से देश कहीं न कहीं चीन से परेशान हुए हैं। वे अपने-अपने घरों में महामारी से लड़ रहे हैं और उसके लिए भी चीन को ही दोषी ठहरा रहे हैं।
इसके बाद भी, भारत ही इकलौता ऐसा देश है जिसने चीन के खिलाफ दम-खम दिखाया है। जबकि पश्चिम के किसी देश ने कुछ खास नहीं किया है। भारत ने चीनी ऐप्स बैन किए, कम्युनिकेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में चीन के निवेश पर प्रतिबंध लगाया, चीनी एफडीआई की गहराई से जांच-पड़ताल शुरू की है।
साथ ही, सीमा पर चीन की नापाक हरकतों के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहा और गलवान में चीनी पीएलए को लहूलुहान भी किया है, भले ही वह कितना भी मुश्किल रहा हो। चीन ने कभी उम्मीद नहीं की थी कि सीमा पर उसके दुस्साहस के खिलाफ भारत इस तरह खड़ा होगा। तीन साल पहले दोलाम प्लेट्यू में भी चीन को उम्मीद नहीं थी कि भूटान की मदद के लिए भारत इस तरह खड़ा होगा।
मोदी ने लद्दाख से दिया चीन को कड़ा संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख का दौरा कर मजबूत कदम उठाया था और यह कहकर चीन को जवाब दिया कि "अब विस्तारवाद का जमाना चला गया, यह जमाना विकासवाद का है। इतिहास गवाह है कि विस्तारवादी ताकतों को या तो पीछे हटना पड़ा है या वह खुद-ब-खुद तबाह हो गई हैं।” इस पर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मोदी के विस्तारवाद वाले बयान पर चीन ने ही तुरंत प्रतिक्रिया दी थी।
भारतीय सेना अपनी सीमा की रक्षा करने में सक्षम है। भारतीय सैनिकों की बहादुरी पर हम भरोसा कर सकते हैं और पिछले कई वर्षों में हमने सेना के जवानों की बहादुरी देखी भी है। हालांकि, उन्हें बेहतर उपकरण चाहिए, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए और सभी संबंधित संस्थाओं/संगठनों के बीच बेहतर समन्वय चाहिए। हमारी सीमा और हमारे जीवन की रक्षा करने के लिए अपने बहादुर सिपाहियों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना भी भारत का दायित्व है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3gWvPVS
https://ift.tt/2DsFAxn
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.