केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का पार्थिव शरीर आज सुबह करीब 9.30 बजे एम्स से उनके 12 जनपथ स्थित सरकारी घर पर लाया गया। वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पासवान को श्रद्धांजलि दी। शाम 3 बजे पासवान का पार्थिव शरीर प्लेन से पटना ले जाया जाएगा। वहां लोजपा ऑफिस में भी अंतिम दर्शनों के लिए रखा जाएगा। शनिवार को पटना के दीघा घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।
#WATCH Delhi: Prime Minister Narendra Modi pays last respects to Union Minister and LJP leader Ram Vilas Paswan at the latter's residence.
— ANI (@ANI) October 9, 2020
The LJP leader passed away yesterday. pic.twitter.com/rDgRrHl7aT
रामविलास पासवान का गुरुवार को 74 साल की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया। वे पिछले कुछ महीनों से बीमार थे और 22 अगस्त से अस्पताल में भर्ती थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पासवान के निधन पर कहा कि अपना दुख शब्दों में बयां नहीं कर सकता। मैंने अपना दोस्त खो दिया। पासवान मोदी कैबिनेट में सबसे उम्रदराज मंत्री थे।
2 बार हार्ट सर्जरी हुई थी
पासवान 11 सितंबर को अस्पताल में भर्ती हुए थे। एम्स में 2 अक्टूबर की रात उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। इससे पहले भी एक बायपास सर्जरी हो चुकी थी।
राजनीति में लालू-नीतीश से सीनियर थे रामविलास
1969 में पहली बार विधायक बने पासवान अपने साथ के नेताओं, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार से सीनियर थे। 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया, 1977 में उन्होंने जनता पार्टी की सदस्यता ली और हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से जीते। तब सबसे बड़े मार्जिन से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड पासवान के नाम ही दर्ज हुआ।
11 बार चुनाव लड़ा, 9 बार जीते
2009 के चुनाव में पासवान हाजीपुर की अपनी सीट हार गए थे। तब उन्होंने NDA से नाता तोड़ राजद से गठजोड़ किया था। चुनाव हारने के बाद राजद की मदद से वे राज्यसभा पहुंच गए और बाद में फिर NDA का हिस्सा बन गए। 2000 में उन्होंने अपनी लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) बनाई। पासवान ने अपने राजनीतिक जीवन में 11 बार चुनाव लड़ा और 9 बार जीते। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा, वे राज्यसभा सदस्य बने। मोदी सरकार में खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री थे।
पासवान के नाम कई उपलब्धियां हैं। हाजीपुर में रेलवे का जोनल ऑफिस उन्हीं की देन है। अंबेडकर जयंती के दिन राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा पासवान की पहल पर ही हुई थी। राजनीति में बाबा साहब, जेपी, राजनारायण को अपना आदर्श मानने वाले पासवान ने राजनीति में कभी पीछे पलट कर नहीं देखा। वे मूल रूप से समाजवादी बैकग्राउंड के नेता थे।
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