मंगलवार, 17 नवंबर 2020

ट्रम्प ने झूठ बोलने को बहुत सामान्य बात बना दिया है

इन चार ऐतिहासिक वर्षों में झूठ बोलना इतना आम, इतना सामान्य हो गया है, जैसा पहले कभी नहीं रहा। मैं नहीं जानता कि इसे कैसे ठीक किया जाएगा, पर ऐसा जल्द करना होगा। जो लोग सच साझा नहीं करते वे महामारी को नहीं हरा सकते, संविधान की रक्षा नहीं कर सकते। सच का युद्ध अब लोकतंत्र के संरक्षण का युद्ध है।
ऐसी स्थिति में आजाद समाज बनाए रखना असंभव है, जब नेता और खबरें देने वाले बिना रोकटोक झूठ फैलाएं। बिना सच, आगे कोई रास्ता नहीं है और बिना विश्वास साथ नहीं चला जा सकता। लेकिन हम इतने गहरे गड्ढे में हैं क्योंकि हमारे राष्ट्रपति सिर्फ एक बात में विश्वास रखते हैं, ‘पकड़े मत जाओ।’ लेकिन पिछले कुछ समय में उन्होंने और उनके आसपास के लोगों ने इसपर भी विश्वास करना बंद कर दिया है। उन्हें अब पकड़े जाने की भी परवाह नहीं है। वे जानते हैं कि जब तक सच अपने जूते के फीते बांधता है, तब तक उनका झूठ आधी दुनिया का सफर कर चुका होता है। वे दुनिया को झूठ से भर देना चाहते हैं, फिर किसी को सच नहीं पता होगा।
सच आपको एकजुट करता है और ट्रम्प ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने कोरोना और चुनावों की ईमानदारी के बारे में जो कहा, उससे यही लगता है। और वे सफल भी रहे। ट्रम्प ने साबित कर दिया कि एक झूठ को दिन में कई बार बोला जाए, तो न सिर्फ उससे चुनाव जीत सकते हैं, बल्कि लगभग दोबारा चुनाव जीता जा सकता है। अमेरिकियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अब ट्रम्प जैसा कोई व्यक्ति अमेरिकी राजनीति में न लौटे।
ट्रम्प ने न सिर्फ खुद झूठ बोले, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने की आजादी दी और उसका लाभ उठाया। जब तक वोट मिलते रहें, उनकी पार्टी को फर्क नहीं पड़ता। जब तक दर्शक मिलते रहें, फॉक्स न्यूज को फर्क नहीं पड़ता। जब तक ट्रम्प गर्भपात विरोधी जजों को नियुक्त करते रहेंगे, उनके कई मतदाताओं को भी फर्क नहीं पड़ता।
इन सभी कारणों से झूठ का उद्योग इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि इसकी खुद की जीडीपी लाइन होनी चाहिए: ‘पिछली तिमाही में ऑटो सेक्टर में 10% की गिरावट देखी गई, लेकिन झूठ बोलने में 30% की बढ़त हुई और अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि झूठ उद्योग 2021 तक दोगुना हो जाएगा।’
इजरायली बदू लोगों के विशेषज्ञ क्लिंटन बेली, बदू मुखिया की एक कहानी सुनाते हैं कि एक दिन उसकी मुर्गी चोरी हो गई। उसने अपने बेटों से कहा, ‘हम खतरे में हैं। मेरी मुर्गी चोरी हो गई है। उसे ढूंढो।’ बेटों ने हंसकर टाल दिया। अगले हफ्ते उसका ऊंट चोरी हो गया। मुखिया ने बेटों से फिर कहा, ‘मेरी मुर्गी ढूंढो।’ कुछ हफ्तों बाद मुखिया का घोड़ा चोरी हो गया। वह फिर बोला, ‘मेरी मुर्गी ढूंढो।’ अंतत: एक दिन उसकी बेटी अगवा हो गई। तब मुखिया ने बेटों को बुलाकर कहा, ‘यह सब मुर्गी की वजह से हुआ है। जब हमने देखा था कि वे मेरी मुर्गी ले जा सकते हैं, मतलब हमने सबकुछ खो दिया।’
और आप जानते हैं कि हमारी मुर्गी कौन थी? जन्मवाद। जब ट्रम्प को ‘जन्म संबंधी’ झूठ फैलाने दिया गया कि हवाई में जन्मे बराक ओबामा दरअसल केन्या में पैदा हुए थे, इसलिए वे राष्ट्रपति बनने के लिए अयोग्य हैं, तब ट्रम्प समझ गए कि वे कुछ भी कहकर बच सकते हैं। बेशक, बाद में ट्रम्प इससे मुकर गए, लेकिन उन्होंने देख लिया कि वे कितनी आसानी से मुर्गी यानी सच चुरा सकते हैं और लगातार ऐसा कर सकते हैं। इससे उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी की आत्मा चुरा ली और दोबारा चुनाव जीतते तो देश की आत्मा चुरा लेते।
वे और उनके सहयोगी अब अमेरिका के लोकतंत्र को बर्बाद करने के लिए फिर बड़े झूठ का सहारा लेकर अमेरिका के उस महानतम पल को अवैध बताने की कोशिश कर रहे हैं, जब महामारी के दौर में भी रिकॉर्ड संख्या में नागरिक वोट करने आए। ट्रम्प और उनके सहयोगी जो कर रहे हैं वह बेहद खतरनाक है लेकिन यह देख और रोना आता है कि उनके कितने समर्थक उनका साथ दे रहे हैं।
इसीलिए यह जरूरी है कि हर प्रतिष्ठित खबर संस्थान, विशेषरूप से टीवी, फेसबुक और ट्विटर ‘ट्रम्प रूल’ अपनाएं। अगर कोई भी अधिकारी झूठ बोलता है, बिना तथ्य आरोप लगाता है, तो उस साक्षात्कार को तुरंत खत्म कर देना चाहिए, जैसा कि हाल ही में चुनाव के बाद ट्रम्प के झूठ बोलने पर कई नेटवर्क्स ने किया था। अगर आलोचक चिल्लाएं, ‘सेंसरशिप’, तो वापस चिल्लाएं, ‘सच।’ यह नया नॉर्मल बन जाना चाहिए। राजनेताओं को टीवी पर झूठ बोलने में डर लगना चाहिए।
इसी के साथ हमें अमेरिका के हर स्कूल में डिजिटल सिविक्स पढ़ानी चाहिए कि यह कैसे पता करें कि इंटरनेट पर दी गई बात सच है या झूठ। इससे पहले कि देर हो जाए, हमें यह फिर स्थापित करना होगा कि झूठ बोलना बुरा है, झूठ बोलने वाले बुरे हैं। हमें सच खोजना होगा, उसके लिए लड़ना होगा और गलत जानकारी देने वाली ताकतों को निर्ममता से हटाना होगा। यह हमारी पीढ़ी की आजादी की लड़ाई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/32QhdmF
https://ift.tt/3kJHauA

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt, please let me know.

Popular Post