लद्दाख में चीन की सेना के साथ हुई झड़प में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू की तस्वीरें तेलंगाना के सूर्यापेट शहर की हर गली-चौराहे पर लगी हैं। उनके घर के बाहर पुलिस का पहरा है। अंदर जाने पर उनके पिता उपेंद्र बाबू से मुलाकात होती है। बैंक से रिटायर पिता को बेटे की शहादत पर नाज है।
लेकिन, जाने का दुख भी बातचीत में छलक आता है। कहते हैं- ‘हम बाप-बेटे नहीं, दोस्त थे। मैंने अपना दोस्त खो दिया।’ वह आगे बताते हैं- ‘जब कभी रिश्तेदार उनसे कहते कि एक ही बेटा है। सेना में क्यों भेज दिया तो संतोष खुद जवाब देते और कहते- ‘जीवन तो सभी जीते हैं, लेकिन मौत मीनिंगफुल होनी चाहिए।
पिता ने कहा- 20 साल में पहली बार उसका तबादला गृह राज्य में होने से हम खुश थे
पिता ने कहा- ‘20 साल की नौकरी में पहली बार उसका तबादला उनके गृहराज्य में हो रहा था। हम खुश थे।’ कर्नल संतोष की 3 साल छोटी बहन श्रुति से भी हम मिले। वह आर्किटेक्ट हैं। बताती हैं- ‘भैया जब भी घर आते थे, तो पापा के जूते खुद पॉलिश करते थे। मां के साथ सब्जी काटते और बर्तन धोते थे।’
आखिरी कॉल पर कहा था- दो दिन बिजी रहूंगा
भास्कर टीम ने उनकी पत्नी संतोषी से बात की। उन्होंने अपने दोनों बच्चों को भी सेना में भेजने का फैसला किया है। वे बताती हैं- ‘14 जून को आखिरी फोन आया था। हालचाल के बाद संतोष ने कहा कि दो-तीन दिन बहुत ज्यादा बिजी रहूंगा, उसके बाद कॉल करूंगा।’ टीवी पर खबरें देखकर लग रहा था कि हालात ठीक नहीं हैं। लेकिन, भरोसा था कि मेरे पति हालात संभाल लेंगे और जीतकर वापस आएंगे।’
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2V6wv30
https://ift.tt/3fD1A6e
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.