बुधवार, 15 जुलाई 2020

कुर्सी किसी के हाथ भी लगे, लेकिन लोकतंत्र हारेगा, सार्वजनिक जीवन की मर्यादा और क्षीण होगी, राजनीति की छवि और धूमिल होगी

राजस्थान में चल रहे सत्ता के दंगल का सबसे अहम सवाल यह नहीं है कि इसमें कौन जीतेगा। बल्कि यह है कि सबसे बड़ी हार किसकी होगी। उत्तर साफ है: इस दंगल में अंततः कुर्सी किसी के हाथ भी लगे, लेकिन लोकतंत्र हारेगा, सार्वजनिक जीवन की मर्यादा और क्षीण होगी, राजनीति की छवि और धूमिल होगी।

एक महामारी के बीचोंबीच प्रदेश के दो शीर्ष नेताओं को जनता की नहीं, सिर्फ अपनी कुर्सी, अपने अहम, और स्वार्थ की चिंता है, यह सच सड़क पर उतर आया है। राजनीति सिर्फ सत्तायोग ही नहीं सत्ताभोग तक सिमट गई है।

कुछ ही दिन पहले मणिपुर में ठीक यही खेल खेला गया था, जब बीजेपी के सहयोगी एनपीपी के मंत्रियों ने अपने मान-सम्मान का मुद्दा उठाकर सरकार गिराने की कोशिश की थी। उससे पहले महाराष्ट्र में बीजेपी द्वारा कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना सरकार गिराने की कोशिश शरद पवार ने नाकाम कर दी थी।

मार्च में जब देश लॉकडाउन की चिंता में था, तब बीजेपी नेतृत्व का ध्यान मध्यप्रदेश में सिंधिया के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार गिराने पर केंद्रित था। इस बीच गुजरात के राज्यसभा चुनाव में एमएलए तोड़ने का खेल हुआ। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में पुलिस इस संकट का फायदा उठाकर विरोधियों को ठिकाने लगाने में जुटी हुई है। बिहार में चुनाव का खेल जोर-शोर से शुरू हो गया है। जहां राशन नहीं पहुंच सकता, वहां टीवी लगाकर भाषण पहुंचा रहे हैं।

इस महामारी के दौर में हर कोई हाथ धो रहा है। विपक्षी विकल्प देने की बजाय कभी-कभार सिर्फ विरोध कर संतुष्ट हैं। लगता है महामारी से जनता स्वयं लड़ेगी, चीन से निहत्थे फौजी लड़ेंगे, पार्टियां सिर्फ चुनाव लड़ेंगी, एक दूसरे से लड़ेंगी। राजनीति में नीति एकदम गायब है। इतिहास गवाह है कि जब-जब आम जन की राजनीति से आस्था उठ जाती है, तब-तब लोकतंत्र पर कब्जा करना आसान हो जाता है।

ऐसे में आज देश को इस महासंकट का सामना करने के लिए एक दूसरे किस्म की पहल की जरूरत है, जिसे जयप्रकाश नारायण ने कभी लोकनीति नाम दिया था। आज सत्ता कर्म को रचना और संघर्ष से जोड़ने की जरूरत है। सत्ता के विरोध की बजाय आज देश बचाने की राजनीति करने की जरूरत है। राजनीति के एकांगी सत्तायोग से बाहर निकलकर क्रांतियोग, सहयोग, ज्ञानयोग और ध्यानयोग की साधना करनी होगी।

आज देश की सबसे पहली जरूरत रचनात्मक काम यानी सहयोग की है। कोरोना अपने उफान पर है, सरकारें हाथ खड़े कर चुकी हैं। जनता भगवान भरोसे है। जहां संक्रमण फैल चुका है वहां लोग घबराए हुए हैं, जहां नहीं फैला वहां बेपरवाह है। ऐसे में एक राष्ट्रीय अभियान की जरूरत है जिसके कार्यकर्ता गांव-गांव बस्ती-बस्ती जाकर लोगों को महामारी के बारे में सही सूचना दें।

इससे बचने के सही उपाय बताएं। लॉकडाउन के धक्के के चलते आर्थिक मंदी और बेकारी के इस दौर में जरूरी है कि जनता के बीच जाकर उनकी छोटी-बड़ी समस्याएं सुलझाई जाएं, शासन प्रशासन तक उनकी परेशानियों को पहुंचाया जाए।इस रचनात्मक काम को जमीनी संघर्ष यानी क्रांतियोग से जोड़ने की जरूरत भी है।

इसके लिए सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता जनता के बीच में जाकर उनका दु:ख-दर्द सुनें और जमीनी हालात देश के सामने रखें। इस महामारी में क्या शासन-प्रशासन जनता के साथ खड़ा है? आर्थिक मंदी के दौर में क्या जनता को न्यूनतम राशन भी उपलब्ध हो पा रहा है? बेकारी से जूझते मजदूरों को क्या मनरेगा जैसी योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है?

गरीब परिवार बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था कैसे कर पा रहे हैं? आज इन सब सवालों को लेकर देश के अंतिम व्यक्ति को जोड़ने और उसके अधिकारों के लिए आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है। लेकिन ऐसा तभी होगा जब कार्यकर्ता खुद जमीन पर जाएं।

संघर्ष और रचना का कर्म ज्ञान के बिना बेमानी है। आज के संदर्भ में ज्ञानयोग का अर्थ होगा देश के सामने मुंह बाए खड़े तिहरे संकट के विकल्प का प्रस्ताव रखना। इस महामारी से निपटने की एक राष्ट्रीय रणनीति और आर्थिक मंदी से उबरने की पुख्ता अर्थनीति के प्रस्ताव की सख्त जरूरत है।

लेकिन आज के संदर्भ में केवल बुद्धि से काम नहीं चलेगा, जनमानस का संकल्प भी बनाना होगा। इसके लिए हर गांव हर मोहल्ले में संकल्पबद्ध नागरिकों की टोली खड़ी करनी होगी आज यही लोकनीति का ध्यान योग होगा। एकांगी राजनीति के मुकाबले पंचमुखी लोकनीति की शुरुआत स्वराज इंडिया ने इस 4 जुलाई को ‘मिशन जय हिन्द’ नाम से कर दी है।

‘सौ दिन देश के नाम’ के आह्वान से शुरू हुए अभियान में देशभर में सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता गांव-गांव, बस्ती-बस्ती जा रहे हैं, उन्हें कोरोना की जानकारी दे रहे हैं, उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी इकठ्ठी कर रहे हैं, एक सात सूत्रीय वैकल्पिक मांगपत्र पर सहमति बना रहे हैं और स्थानीय स्तर पर जनता की समस्याओं का निराकरण करने के लिए समितियां गठित कर रहे हैं। यह सौ दिवसीय अभियान 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण की जयंती पर संपन्न होगा। उम्मीद है कि इस साल जयप्रकाश जयंती देश में लोकनीति के नए दौर की शुरुआत होगी।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिया


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/38XCxZB
https://ift.tt/32kouvI

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt, please let me know.

Popular Post