बेरूत की रहने वाली सैंड्रा अबिनाडार जरा सी हलचल होते ही चौंक जाती हैं। एक दिन वह जार खोल रही थीं कि अचानक कोई शोर हुआ, वह डर के मारे जार छोड़कर भाग खड़ी हुईं। 18 साल की सैंड्रा हो या 24 साल की लुर्डेस फाखरी इन दिनों ऐसी ही मानसिक समस्याओं से जूझ रही हैं।
लुर्ड्स तो अचानक रोने लगती हैं। बेरूत में हुए धमाकों को दो हफ्ते बीत चुके हैं, पर लोग उबर नहीं पाए हैं। पर सैंड्रा पेशेवर साइकियाट्रिस्ट की मदद लेने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके मुताबिक हम समस्याओं से निबटना सीख चुके हैं। बिना किसी शिकायत के हमें सहना आ गया है।
दरअसल देश के लोग लंबे समय तक गृहयुद्ध और सांप्रदायिक संघर्ष झेल चुके हैं। इसके बाद कोरोना महामारी और फिर धमाकों ने उन्हें तोड़कर रख दिया है। अब डॉक्टर भी मेंटल हेल्थ इमरजेंसी की चेतावनी दे रहे हैं, क्योंकि लोगों में बुरे सपने, अचानक रो देना, चिंता, गुस्सा और थकावट जैसे मानसिक आघात के लक्षण दिखने लगे हैं।
टीवी और सोशल मीडिया पर धमाकों से जुड़ी तस्वीरों से असर पड़ रहा
मनोचिकित्सकों का कहना है कि टीवी और सोशल मीडिया पर धमाकों से जुड़ी तस्वीरों को बार-बार दिखाए जाने का भी बुरा असर दिमाग पर पड़ा है। मेंटल हेल्थ एनजीओ एम्ब्रेस से जुड़े जैद दौ के मुताबिक लोग हताश हो चुके हैं, जैसे ही उन्हें लगता है कि अब कुछ नहीं होगा, तभी कुछ और बुरा घट जाता है।
सायकोलॉजिस्ट वार्डे डाहेर का कहना है कि कभी पेशे से जुड़े लोगों ने किसी मुद्दे पर बात से इनकार नहीं किया, पर इन धमाकों के बाद कहना पड़ा कि अभी तो हम खुद सदमे में हैं, दूसरों की मदद कैसे करें।
मनोचिकित्सक ओला खोदोर कहती हैं कि लोग ऐसी समस्या से रूबरू नहीं हुए हैं, इसलिए वे खुद की और बच्चों की मदद नहीं कर पा रहे हैं। बच्चों को पूरा नहीं, पर सच तो बताना ही होगा ताकि वे भी भावनाएं व्यक्त कर सकें।
बच्चों को समझाने में ज्यादा मुश्किलें पेश आ रही: मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस घटना के बाद बच्चों को समझाना मुश्किल साबित हो रहा है। माता-पिता बच्चों को बताते हैं कि वह तो बस खेल था। जैसे एक पिता ने बच्चों को धमाके के बारे में बताया कि यह प्रीटेंड बूम गेम था, जिसमें प्लेहाउस में धमाका हुआ और खरगोशों को बचने के लिए भागना पड़ा। उधर, यूनिसेफ के सर्वे के मुताबिक बेरूत के 50% बच्चों में चिंताजनक लक्षण दिखे हैं।
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