मंगलवार, 25 अगस्त 2020

आलोचक मान लें कि मोदी को खुद मोदी ही हरा सकते हैं या कोई करिश्माई और नए विचार वाला नेता लाइए

लद्दाख में चीनियों के ‘धरने’ को 100+ दिन हो चुके हैं, कोरोना संकट 6 महीने से है और आर्थिक गिरावट का यह चौथा साल है। इससे नरेंद्र मोदी के कई आलोचक भड़के हुए हैं। आखिर इतनी परेशानियों के बावजूद लोग मोदी के खिलाफ क्यों नहीं हो रहे? क्या मोदी ने उन सब पर कोई जादू कर दिया है कि किसी को उन पर अविश्वास नहीं है?

लेकिन ऐसा कोई जादू नहीं है। भारतीय राजनीति ऐसी ही है। लोगों से पूछिए, क्या वे कष्ट में हैं? वे जवाब देंगे, हां। तो इसके लिए मोदी जिम्मेदार हैं? याद है, महीनों पहले परेशान प्रवासी मजदूर कह रहे थे, ‘मोदीजी क्या करते? उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए जोखिम उठाया।’ ऐसा ही चीन और आर्थिक संकट के साथ है। ‘70 वर्ष’ की गड़बड़ी ठीक करने में समय तो लगेगा। कोरोना? उन्होंने तो समय पर लॉकडाउन लगा दिया और बोरिस या ट्रम्प की तरह महामारी को हल्के में नहीं लिया। अब वे क्या करें अगर दुष्ट वायरस उनकी नहीं सुन रहा?’

मोदी की लोकप्रियता चरम पर आ गई है

भले ही मोदी के आलोचक होने के नाते आप परेशान हों लेकिन ठेठ राजनीति को समझने के लिए आपको हकीकत कबूल करनी पड़ेगी। ‘इंडिया टुडे मूड ऑफ द नेशन’ सर्वेक्षण में आप हजार गलतियां निकाल लें, फिर भी इसका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा ही रहा है। इसने मोदी की लोकप्रियता को आज अपने चरम पर बताया है, वह भी तमाम बदहाली के बीच। तो आखिर हो क्या रहा है? आप अपरिचितों से बात कीजिए, वे कबूलेंगे कि वे कष्ट में हैं।

क्या मोदी को वोट देकर उन्होंने गलती की? अगली बार किसे वोट देंगे? उनके जवाब आपको और परेशान करेंगे। तो क्या ये लोग पागल हैं? इसे ऐसे समझिए। साधारण लोग भयानक बीमारी होने पर अस्पताल में भर्ती होकर क्या करते हैं? वे डॉक्टरों पर भरोसा करते हैं। अस्पताल बदलने की शायद ही कोशिश हो। कई परेशानियों से त्रस्त भारत के अधिकांश मतदाता भी आज ऐसी ही स्थिति में हैं।

1971 में इंदिरा गांधी का क्या कर लिया था ?

तमाम तरह के बुद्धिजीवी इन दिनों कई सलाह देते हैं कि मोदी को हराने के लिए क्या करें, क्या नहीं। विपक्ष के एकजुट होने की रट पुरानी और असफल है। 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ महागठजोड़ ने क्या कर लिया था। सभी वामपंथी, सेक्युलर ताकतों को एकजुट करने की बात पर भी जम्हाई आती है।

भारत के सियासी नक्शे पर नज़र डालिए, कहीं भी ऐसा नेता नज़र आता है जो मोदी के लिए कोई चुनौती खड़ी कर सके? अमरिंदर सिंह, ममता बनर्जी… ठीक है। तीसरा नाम लीजिए। दूसरी संभावनाएं? कांग्रेस का नेतृत्व बदल दीजिए। एक सुझाव यह भी है कि कांग्रेस का पुनर्गठन किया जाए। ममता, शरद पवार, जगन मोहन रेड्डी और संगमाओं तक, तमाम महारथी वापस लाए जाएं। लेकिन क्या आपने कभी उनसे पूछा है कि वे क्या यह चाहेंगे? अभी तो ये सब कपोल कल्पनाएं ही हैं।

जो सबसे सरल होता है उसे ही सही मान लेते हैं

मुझे हाल ही किसी ने एक सिद्धांत बताया जिसे ‘ऑक्कम्स रेज़र’ कहते हैं। 1285 के इंग्लैंड में जन्मे विलियम ऑक्कम का सिद्धांत था कि जब किसी घटना के बारे में या उसकी संभावना के बारे में कई व्याख्याएं दी जा रही हों, तब उनमें से जो सबसे सरल लगे उसे ही सही मान लो।

इससे भी आसान यह है कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जितनी कम पूर्व-धारणाएं रखी जाएं उतना बेहतर। इसके विपरीत, अगर बहुत ज्यादा कल्पनाएं करके चलेंगे तो आप गलत निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। मुझसे बातचीत करने वाले ने इस सिद्धांत को भारत की भावी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया। और जब हम इस पर चर्चा कर रहे थे कि 2024 में परिदृश्य क्या होगा, तब उन्होंने कहा कि उस परिदृश्य पर गौर कीजिए, जिसके साथ कम अगर-मगर जुड़े हों। वह परिदृश्य यही है कि मोदी फिर से पूर्ण बहुमत के साथ वापस आ जाएंगे। बाकी दूसरी धारणाएं ‘ऑक्कम्स रेज़र’ से कट जाती हैं।

इसलिए, बात को सरल रखने के लिए अपनी सभी ख्वाहिशों को परे रखिए, राजनीतिक इतिहास के अपने ज्ञान को खंगालिए, आपको कुछ रोशनी दिखेगी। भारत में मजबूती से सत्ता में जमे नेता को कभी किसी प्रतिद्वंद्वी ने नहीं हराया। ऐसे मजबूत नेता अपनी वजह से ही हारे हैं, जैसा कि 1977 में इंदिरा गांधी के साथ, 1989 में राजीव गांधी के साथ हुआ। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी भी 2004 में किसी स्पष्ट प्रतिद्वंद्वी से नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी के दोहरे अहंकार के कारण हारे।

लोकप्रिय नेता से लड़ने का तरीका है कि कोई करिश्माई आकर्षण और नए विचार वाला नेता ले आइए

आप मोदी को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो आप क्या करेंगे? क्या आप इंतज़ार करेंगे कि वे अपनी हार खुद तय कर दें? या कुछ ठोस करने की कोशिश करेंगे? लोकप्रिय नेता से लड़ने का पारंपरिक तरीका तो यही है कि एक करिश्माई आकर्षण और नए विचार वाला, महत्वाकांक्षी नेता खोजिए। अगर राजनीति एक मेगा मार्केट है, तो उसमें अलग तरह का प्रोडक्ट चलाने की जरूरत होगी। जब तक इन तमाम संयोगों का मेल नहीं बैठता, मोदी अजेय दिखेंगे। इसलिए, अब आप यही उम्मीद कर सकते हैं कि मोदी भी उन सभी नेताओं की तरह अपनी हार का खुद ही इंतजाम कर लें, जिनका मैंने ऊपर जिक्र किया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jfImW9
https://ift.tt/2FOZdAt

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt, please let me know.

Popular Post