रात के सवा 12 बजे रहे हैं। विदिशा से सागर जाने वाले हाईवे पर स्थित एकपेट्रोल पंप पर चार काली-पीली टैक्सी और दो आटो रिक्शा वाले खड़े हैं। यहां वे पेट्रोल-डीजल डलवाने के बाद सुस्ता रहे हैं। उनके साथ में छोटे बच्चे और महिलाएं भी हैं। कुछ यहीं पर चादर बिछाकर सोने की तैयारी भीकर रहे हैं।
शरदचंद्र पांडेय यूपी के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले हैं। कहते हैं कि हमें तीन दिन हो गए हैं, मुंबई से निकलेI हम वहां टैक्सी चलाते थे, लॉकडाउन से पहले अम्मा का आंख का ऑपरेशन कराने के लिए बंबई ले गए थे। लेकिन आंख ऑपरेशन छोड़िए बाकी धन्धा-पानी भी चौपट हो गया। खाने की लाले पड़ गए हैं, बसअब घर जा रहे हैं, कम से कम खाने-पीने को तो मिलेगा। कुछ नहीं तो खेती बारी है, वहीकर लेंगे।
अनु सिंह बनारस की रहने वाली हैं। पति मुंबई में आटो चलाते हैं। कहती हैं कि शादी के बाद पति के साथ बंबई चली गई थी, तब से वहीं की होकर रह गई।आज ऐसे हालात हो गए हैं कि ऑटोसे ही घर जाना पड़ रहा है। अब करें भी तो क्या करें। दो महीने से उनका (पति) का ऑटो खड़ा है। बंबई में कोरोना बढ़ ही रहा है। दो महीने हो गए, सरकार की तरफ से कोई मदद मिली नहीं। उलटा घर में बंदी बना दिया। अब जाएंगे गांव में ही कुछ करेंगे।
अवधेश शुक्ला बंबई की एक फाइनेंस कंपनी में काम करते थे, वे शनिवार को पांच बजे बाइक से प्रयागराज के लिए निकले हैं। कहते हैं कि कसोराघाट पर अभी बाइक खराब हो गई थी, पांच किलो मीटर खींच कर लाना पड़ा है। अब अंधेरा हो गया है, सुबह होने पर बनऊंगा, तब यहीं सो रहा हूं।
मुंबई वापस जाने के सवाल पर अवधेश कहते हैं कि बंबई में भी अपना बसेरा है, जिंदगी भर के लिए तो उसे छोड़ सकते नहीं, गांव में भी तो बैठकर कुछ नहीं कर पाएंगे। अब चल रहे है, दो-चार दिन में पहुंच ही जाएंगे। वहां मरने से बेहतर है, घर चलें। दो महीने से कंपनी से सैलरी नहीं मिली। अब सेविंग के पैसे भी खत्म हो चुके हैं। मकान मालिक को किराये देने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे।
प्रतापगढ़ के पट्टी के रहने वाले सुरेश पांडेय बंबईमें आटो चलते हैं। वे पूरे परिवार को लेकर गांव निकले हैं। कहते हैं कि मेरे जैसे 20 हजार से ज्यादा ऑटोवाले बंबई से यूपी-बिहार जा रहे हैं। सब कुछ ठीक रहा तो तीन-चार महीने में लौटूंगा, नहीं तो घर पर ही कुछ करूंगा।
भानू मुंबई ड्राइविंग करते हैं। कहते हैं कि महाराष्ट्र वाले वैसे ही यूपी-बिहार वालों से जलते थे। अब तो उन्हें मौंका भी मिल गया है। वे मराठी लोगाें के लिए बस चला रहे हैं। बाहर वालों से कहते हैं कि बस काइंतजार करो एक दो हफ्ते का। दलाल बस के टिकट के लिए दो से तीन रुपए मांगते हैं। वहां रोक तो रहे हैं, लेकिन अब करेंगे क्या? अब भूखे थोड़े मरेंगे।
भानू बताते हैं किरास्ते में महाराष्ट्र के पुलिस वालों ने भी खूब परेशान किया, कईयों को तो डंडे भी पड़ रहे। लेकिन मध्य प्रदेश सीमा में पहुंचते ही सब बदल गया। रास्ते में जगह-जगह ऐसी व्यवस्था मिली कि बता नहीं सकते हैं, इसी धरती पर स्वर्ग नजर आ रहा है, टू स्टार थ्री स्टार इंस्पेक्टर खुद अपने हाथ से चाय, छांछ, ब्रेड, नाश्ता दे रहे हैं। यहां कोई दिक्कत नहीं है। भगवान चाहेंगे तो दो-तीन दिन में घर पहुंच जाएंगे, फिर खेती शुरू करेंगे।
- मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बार्डर पर ललितपुर में दो हजार लोग बस के इंतजार में
सुबह के सात बज रहे हैं। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बार्डर पर ललितपुर जिले की सीमा पर करीब दो हजार से ज्यादा लोगों का जमावड़ा है। मध्य प्रदेश की बसें महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के अन्य राज्यों से आने वाले लोगों को यहीं पर छोड़ रहे हैं। इनमें ज्यादातर इंदौर की सिटी बसें हैं। लेकिन अभी यहां यूपी की दो बस ही खड़ीहैं। ऐसे मे लोग इधर-उधर बैठे हैं, पुलिस प्रशासन ने लोगों के लिए चाय-नाश्ते का बंदोबस्त कर रखा है।
यहां से ललितपुर शहर पहुंचते हैं तो प्रयागराज कुंभ के लिए चलाई गई कुछ स्पेशल बसें बार्डर की ओर जाते हुएदिखाई देती हैं। ललितपुर-झांसी हाईवे पर एक पति-पत्नी अपने दो छोटे बच्चों को रेहड़ी वाले ठेले पर बिठाकर ले जा रहे हैं। हाइवे पर और पैदल चलने वाले लोग तो बहुत कम दिखाई दे रहे हैं। हां, ट्रकों और मिनी ट्रकों के अंदर लोगजरूर बैठकरजा रहे हैं।
- तपती दोपहरी और42 डिग्री तापमान में लोग ट्रकों में लदी गिट्टी के ऊपर बैठकर जा रहे
झांसी, दिन के 11 बज रहे हैं, तेज धूप के बीच प्रवासी मजदूर ट्रकों और विकप के अंदर बैठकर जा रहे हैं। तापमान 42 डिग्री से ज्यादा है। कुछ मजदूर ट्रकों में लदी गिट्टी के ऊपर बैठकर जा रहे। वहीं, कुछ प्रवासी मजदूर सड़क किनारे पेड़ों के छांव में आराम कर रहे हैं।
जालौन, छोटे बाजारों मेंप्रवासी मजूदरों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की गई। स्थानीय युवक पूरी-सब्जी, केला, पानी दे रहे हैं। इन्हीं में से एक रफीक जो लोगों को पानी पिला रहे हैं। कहते हैं कि यह समय लोगों की मदद करने का है। इसलिए हम कर रहे हैं। भूखे-प्यासे लोग हमें दुआ देंगे। सद्दाम कहते हैं कि हमें जबसे पता चला कि लोगइस तरह अपने घरों को आ रहे हैं, तब से हम रोज इस तपती दोपहरी में भी लोगों को नाश्ता करा रहे हैं, यह हमारा फर्ज है।
- विकप में 23मजदूर ऊपर-नीचे बैठे हैं, कहते हैं- दो रोटी कम खाएंगे, परखुली हवा में सांस तो लेंगे
कानपुर देहात, यूपी के सिद्धार्थनगर के रहने वाले करीब 23मजदूर एक विकप में ऊपर नीचे-बैठे हुए हैं।ये सभी मुंबई की प्लास्टिक फैक्टरी में काम करते थे। अब फैक्टरी में कामकाज बंद है। इन्हीं में से एक रामपाल कहते हैं कि अब वहांकुछ बचा ही नहीं था, जो रुकते। न काम है, न रोटी है। इसलिए अपने-अपने गांव जा रहे हैं। दो रोटी कम मिलेगी, मगर खुली हवा में सांस तो ले पाएंगे न। हम सभी 23 लोग आसपास के गांवों के ही हैं, अब जरूरत पड़ी तो अपने लोग ही काम आते हैं।
- लखनऊ-कानपुर हाइवे पर आम दिनों जैसा ही ट्रैफिक, भाजपा नेता स्टाल लगाकर मजदूरों को खिला रहे
कानपुर, दिन के तकरीबन 3 बज रहे हैं, कानपुर में जगह-जगह स्थानीय भाजपा नेताओं ने खाने-पीने का स्टाल लगा रखा है। कुछ स्टालों पर विधायक की फोटो भी लगाई गई है। कुछ जगहों पर पुलिस वाल कुर्सी लगाकर बैठे हुए हैं,सामने फूल माला रखा है, पीछे विधायक की फोटो लगी है। यहांलोग आने वालीहर गाड़ी को रोककर खाने-पीने का सामान दे रहे हैं, जो नहीं भी लेना चाह रहे, उनकी गाड़ी में भीलोग जबरदस्ती केला, पूड़ी सब्जी, खिचड़ी, पानी आदिरख दे रहे हैं।
यहां से आगे बढ़ते हैं, तो कानपुर-लखनऊ हाईवे पर काफी ट्रैफिक है, दुकानें भी बड़ी संख्या में खुली नजर आ रही हैं। हालांकि पुलिस ने कुछ जगहों पर बैरिकेडिंग वगैरह कर रखा, बावजूद लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल रहे हैं।चार बाग बस अड्डे पर बड़ी संख्या में बसें खड़ी हैं। गेट पर पुलिस मुस्तैद है। रेलवे स्टेशन के बाहर भी भीड़भाड़ है। कुछ निजी वाहन लोगों को बैठा रहे हैं। सफाई कर्मी झाड़ू मार रहे हैं। हजरतगंज में आम दिनों के मुकाबले भीड़ थोड़ी कम है।
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