बुधवार, 20 मई 2020

क्रूर कोरोना का कहर जारी, लेकिन लॉकडाउन में मिली राहत से जिंदगी में रौनक लौट रही

कोरोना का कहर अब भी जारी है, कहीं आंखों के सामने अपनों को खोने का गम है तो कहीं न चाहते हुए भी बोझ लादकर हजारों किलोमीटर का सफर पैदल तय करने की मजबूरी भी है। लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद एक तरफ कुछ लोगों को कोरोना के और ज्यादा फैलने का डर है तो दूसरी तरफ एक तबका ऐसा भी है, जिसके लिए ये राहत उम्मीद की एक किरण बनकर आई है, ये तबका उन मजदूरों का है, जिन्हें रात का खाना तब ही नसीब होता है, जब दिन में उन्हें कहीं कुछ काम मिलता है, ये तबका उन मिडिल क्लास लोगों का है, जिनके सामने कुछदिनों बाद लोन की किश्त भरने की चुनौती है, ये तबका उन लाचार लोगों का भी है, जो किसी से मांगने की जगह कमाकर ही अपना और अपने परिवार का पेट भरना चाहते हैं।

भूख से तड़पती बच्ची को जब खाना मिला तो खिला चेहरा

यह बच्ची दिनभर से भूखी थी और इस इंतजार में बैठी हुई थी कि कहीं से खाना मिल जाए, इतने में ही कोई खाना बांटने आया और बच्ची को थाली में चावल और सब्जी दे गया। भूखे पेट भोजन मिलने की खुशी ऐसी ही होती है।

ऐसा खौफ... मास्क के साथ नोट भी कर दिए सैनिटाइज

हर तरफ कोरोना का खौफ छाया हुआ है, जिसके बीच लोग खुद के साथ अपने परिवार का भी ध्यान रख रहे हैं, ऐसे में लोग मास्क के साथ-साथ अब नोटों को भी सैनिटाइज करने लगे हैं। ऐसा ही कुछ रांची के नेताजी नगर में देखने को मिला, जहां एक महिला फेस मास्क और बाहर से लाए गए नोटों को सैनिटाइज कर रही है।

जलते पांवों पर रायपुर ने लगाया मरहम

ये तो नहीं कहा जा सकता कि मजदूरों का दर्द पूरी तरह खत्म हो गया है, लेकिन एक हकीकत यह है कि छत्तीसगढ़ और खासकर रायपुर आते-आते मजदूरों को सहारे के सैकड़ों हाथ मिल रहे हैं। रायपुर में कई संस्थाएं, समाज, विधायक, सरकार, पुलिस और यहां तक कि व्यक्तिगत रूप से भी लोग जगह जगह चप्पलें बांट रहे हैं। लोग घरों से जब निकलते हैं, तो अपनी गाड़ियों में चप्पलें, खाने का सामान, पीने का पानी आदि लेकर निकलते हैं और जहां कहीं कोई मजदूर दिखता है,उसकी जरूरत के मुताबिक मदद करते हैं। -फोटो : सुधीर सागर

कलेजे पर भविष्य और सिरपर गठरी का बोझ

तस्वीर दिल्ली की है, जहां एक महिला सिर पर गठरी लिए कहीं जा रही है, उसके साथ उसका बच्चा भी है, जिसे उसने गले में बांधकर रखा है।

39 डिग्री की तपिश में मां के आंचल का सहारा

रोहतक रेलवे स्टेशन पर 39 डिग्री तापमान के बीच प्रवासी मजदूरों की लंबी कतार लगी हुई है। इस गर्मी से अपने बच्चे को बचाने के लिए एक मां ने उसे अपने आंचल में छिपा लिया।

घर पहुंचने का सुकून, लेकिन आंखों में सफर का दर्द

श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बेंगलुरू से 424 मजदूरों को लेकर भगत की कोठी स्टेशन पर पहुंची, जिसके बाद स्वास्थय विभाग की टीम वहां स्क्रीनिंग करने पहुंची। स्क्रीनिंग करते कर्मचारियों को ये बच्चे हैरत भरी निगाहों से देखने लगे।

राहतों का शटर खुला तो सैलून और ब्यूटी पार्लर पहुंचे

जयपुर के मालवीय नगर में लंबे समय के बाद खुले एक ब्यूटी पार्लर और हेयर सैलून में ग्राहक आने शुरू हो गए हैं। पहले दिन पूरे सुरक्षा मापदंडों के उन ग्राहकों का ही काम किया जा रहा है, जो पहले से अपॉइंटमेंट ले चुके है।

स्वाद....टिक्की वाला चौक में चटखारे

रैनक बाजार में मशहूर टिक्कियां वाला चौक में मंगलवार को महिलाओं ने खरीदारी करने के बाद टिक्कियॉ एंजॉय कीं। 'बड़े दिनां बाद ऐत्थे दी टिक्की खाण नूं मिली आ।' बाजार में मशहूर टिक्की की दुकान पर टिक्की खाने वालों की भीड़ लगने लगी तो दुकानदार ने कहा, 'भीड़ न लगाओ जी। नई तां पुलिस वालियां ने दुकान बंद करवा देनी।

गठरी और कलेजे के टुकड़े के साथ जिंदगी का बोझ

ये तस्वीर मजबूरी के बोझ तले दबी जिंदगी को दिखाती है। जबलपुर स्टेशन पर यह महिला अपने मासूम बच्चे और एक गठरी लेकर श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन से उतरी इसके बाद आगे का सफर तय करने के लिए वहां से चली गई।

मौत के बाद भी नहीं मिला सुकून

पांच दिन पहले सड़क हादसे में घायल ज्योति की मंगवार को मौत हो गई, ज्योति का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया था, ग्वालियर के लक्ष्मीगंज मुक्तिधाम में जब उसका शव रखा गया तो वह प्लेटफॉर्म के गेट में फंस गया। गेट बंद होने से पहले ही भट्‌टी चालू हो गई। बांस से शव को अंदर करने की कोशिश की गई, लेकिन धुंआ भरने के बाद उसे वैसा ही छोड़ दिया गया।



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अपने जवान बेटे को अपनी आंखों के सामने दुनिया छोड़कर जाते देखने से बड़ा दुख किसी माता और पिता के लिए और कुछ नहीं हो सकता, ये ऐसा दुख होता है, जो कमजोर हो चुके सहारे को तोड़कर रख देता है। ऐसा ही एक नजारा जयपुर में देखने को मिला, जहां 27 साल के जवान बेटे की लाश महज 10 मीटर दूर पॉलिथिन में लिपटी पड़ी रही, लेकिन मां बाप उसका चेहरा तक ठीक से नहीं देख सके। दरअसल, जयपुर के युगल किशोर सड़क हादसे का शिकार हो गए थे। उनके पिता कन्हैयालाल बताते हैं कि जब युगल की कोरोना जांच की गई तो वो पॉजिटिव निकला और कुछ दिनों बाद ही उसकी मौत हो गई। फोटो, संदीप शर्मी


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