शनिवार, 25 जुलाई 2020

विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर अभी अध्ययन कर रहा है कि कोरोना एयरबॉर्न है तो कितना और किस तरह के मरीजों का इसमें कितना योगदान है

कोरोना वायरस हवा में है या नहीं, है तो कहां और कितनी देर हवा में रह सकता है इस पर वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैज्ञानिक भी इस पर अध्ययन कर रहे हैं। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि यह हवा में भी हो सकता है और यदि इसमें थोड़ी भी सच्चाई है तो इस वायरस से बचाव रखना ही सबसे बड़ी चुनौती है। हवा में हो सकता है यह मानकर अपना बचाव करना चाहिए।

दरअसल जब कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति जिसमें लक्षण हों और वह खांसता या छींकता है और यदि वह थोड़ी देर के लिए भी मास्क खोलता है और खुले में रहता है तो उसके मुंह-नाक से निकले ड्रॉपलेट कुछ दूर और कुछ देर तक हवा में रह सकते हैं। खांसने या छींकने पर मुंह या नाक से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स का आकार पांच माइक्रोन या इससे ज्यादा का हो तो ये बहुत दूर तक हवा में नहीं जाते।

ये एक से दो मीटर तक जाने के बाद ही सतह या जो वस्तु आसपास होगी उस पर गिर जाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि आप किसी भी व्यक्ति से दो मीटर की दूरी बना कर रखते हैं और मास्क पहने रहते हैं तो कम से कम एयरबॉर्न कोरोना का खतरा तो नहीं रहता है। लेकिन यदि सतह पर पड़े ड्रॉपलेट्स को आप छू लेते हैं और उसके बाद मुंह, नाक या आंख छूते हैं तो इससे संक्रमण का खतरा बना रह सकता है।

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि कई बार ड्रॉपलेट का आकार पांच माइक्रोन से छोटा एक या दो माइक्रोन भी होता है। ये ड्रॉपलेट बहुत हल्के होने की वजह से हवा में पांच से छह मीटर तक भी जा सकते हैं और कुछ घंटे तक हवा में भी रह सकते हैं। यदि कमरा बंद हो और एयरकंडीशन चल रहा हो तो वायरस के कण पांच से छह घंटे तक भी हवा में रह सकते हैं। इस पर अभी मतभेद हैं कि इस तरह से वायरस, कितने फीसदी तक संक्रमण का खतरा बढ़ा सकते हैं।

बिना लक्षण वाले मरीजों से एयरबॉर्न डिजीज होने का खतरा नहीं के बराबर होता है क्योंकि ये खांसते-छींकते नहीं हैं। लेकिन यदि लक्षण हों और वे कमरे में खांसते-छींकते हैं तो ड्रॉपलेट हवा में आ जाते हैं। इसके बाद यदि कोई व्यक्ति उस कमरे में बाहर से आ गया तो उसे संक्रमण का खतरा हो सकता है।

इसलिए कमरे में बाहर से अंदर और अंदर से बाहर हवा आने-जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। एसी का इस्तेमाल हो रहा है तो एग्जॉस्ट जरूर चलते रहना चाहिए और यदि संभव हो तो ऑफिस में एयरकंडीशन से बचना चाहिए, खासकर सेंट्रलाइज्ड एयरकंडीशन। अंदर की हवा बाहर जाती रहती है तो इससे कमरे के अंदर संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।

कहीं भी यह डेटा नहीं है जो सही तरीके से यह बता पाए कि एयरबॉर्न की स्थिति में किस तरह के कोरोना मरीज ज्यादा खतरनाक होते हैं। हालांकि कुछ डेटा यह कहते हैं कि प्री-सिम्टोमैटिक मरीज से 40 फीसदी, बिना लक्षण वाले मरीजों से 10 फीसदी और बाकी 50 फीसदी लक्षण वाले मरीजों से खतरा रहता है।

यह अलग-अलग लोगों का अलग-अलग एनालिसिस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर अभी अध्ययन कर रहा है कि कोरोना एयरबॉर्न है तो कितना और किस तरह के मरीजों का इसमें कितना योगदान है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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डॉ. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली


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