27 साल के विष्णु गुर्जर जयपुर के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएस के मुर्दाघर में काम करते हैं। शवों के बीच रहना उनके लिए कोई नई बात नहीं, कई सौ शवों को छू चुके हैं, पिछले सात साल से वह यही नौकरी तो कर रहे हैं। लेकिन ये पहली बार था जब विष्णु को शव दफनाने या उनके अंतिम संस्कार का काम करना पड़ा।
पिछले 50 दिनों में 65शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। विष्णु की जुबानी शवों को दफनाने और जलानेकी कहानी-
आज तक मैं किसी कब्रिस्तान और शमशान में नहीं गया। कोरोना के चलते जब मेरी ड्यूटी में अंतिम संस्कार करना भी शामिल कर दिया गया तो पहली बार एक कब्रिस्तान में कदम रखा होगा। उसके बाद से अब तक अकेला 16 मुस्लिमों के शवों को दफना चुका हूं और 10 शवों को खुद ने आग दी है। बाकि साथियों के साथ मिलकर अब तक हिंदू-मुस्लिम के 66 शवों का अंतिम संस्कार कर चुका हूं।इस दौरान एक घटना ऐसी भी हुई जब दिल में डर बैठ गया।
इसी महीने के पहले हफ्ते में एक ही मुस्लिम परिवार के दो शव आए थे। मुझे तो पता भी नहीं था कि कैसे दफनाते हैं। वहां मौजूद लोगों से ही पूछा। फिर मुझे बताया गया था कि कोरोना की गाइडलाइन के मुताबिक थोड़ा ज्यादा गहरा गड्ढा खोदना होता है।
जब कब्र के लिए गड्ढा खोदना शुरू किया तो थोड़ी देर बाद मुझे वहां घुटन महसूस होने लगी। कुछ सेकंड के लिए मैं डर गया। पीपीई किट पहने हुए था तो पसीने में तरबतर तो पहले से ही था। दोनों की मौत कोरोना से हुई थी ये सोच सोचकर मेरे हाथ कांप रहे थे।
परिजनों ने दूर से ही शवों के आखिरी बार देख लिया था। परिजन तो शवों के पास भी नहीं जाते। शव पूरे पैक होकर आते हैं। हम ही स्ट्रेचर से बॉडी को उतारते हैं। फिर अंतिम क्रियाएं करते हैं।
यदि मुस्लिम की बॉडी होती है और कोई कलमा पढ़ना चाहता है तो उसे कलमा पढ़ने का पूरा टाइम देते हैं फिर दफनाते हैं।
शव को दफनाने के बाद अगले तीन-चार दिनों तक डरावने सपने आते रहे। रात में कई बार झटके से नींद खुल जाती थी। मन में ये डर भी लगता था कि कहीं हमें कोरोना न हो जाए।
लेकिन शव आते रहे और हम भी अपना काम करते रहे। हिंदू का रहता है तो जला देते हैं। मुस्लिम का होता है दफना देते हैं।
अस्पताल में कोरोना मरीजों के आने के बाद से ही घर जाना बंद कर दिया था। 40 दिन बाद पहली बार घर गया, डरते डरते कहीं परिवार में किसी को मेरी वजह से इंफेक्शन न हो जाए।
घर में एक छ महीने की बेटी एक तीन साल का बेटा और पत्नी हैं। उन्हें संक्रमण न हो जाए इसलिए घर जाना छोड़ दिया था। अब भी जिस दिन शव जलाता हूं या दफनाता हूं उस दिन नहीं जाता।
हॉस्पिटल के बाहर ही बनी एक धर्मशाला में हम लोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। यहीं रहते हैं। यहीं खाते पीते हैं। हालांकि अब दो-तीन दिन के अंदर में घर जाने लगे हैं।
क्योंकि लॉकडाउन को बहुत लंबा समय हो गया। हालांकि मेरी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई है। इसके बाद से ही घर जाना शुरू किया है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3dMvm7F
https://ift.tt/2WEX1ln
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.