सोमवार, 18 मई 2020

मौत, जन्म के बीच संघर्ष करता भारत का बचपन, इस पराक्रम से देश का बढ़ा हौसला...

किसी ने सच कहा हैकि जीवन एक संघर्ष है। उस पर चलकर ही हर चुनौती को पार करते हुए मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। कोरोना की वजह से देशभर में लॉकडाउन होने के कारण हर किसी की जिंदगी एक नए मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है। देशभर में पलायन का दौर जारी है। घर पहुंचने की जिद और जीवन को गंवा देने का डर कदमों को अपने घरों की ओर मोड़ चुका है। इस बीच बचपन भी आपदा का गवाह बन रहा है। क्या राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़... नवजात अपनी मां के साथ सफर कर रहे हैं। यह नवजात अव्यवस्था का गवाह बनकर अपने जीवन की बुनियाद लिख रहे हैं। इनके पीछे क्या इच्छाशक्ति है, यह तो वही जानें, लेकिन इतना तय है कि इस संघर्ष के बीच मां की गोद में ये मासूम जिंदगी जीने का वो सिरा तलाश रहे हैं, जहां से उन्हें व्यवस्थित भारत की तस्वीर नजर आए। कोई अपनी मां की गोद में बैठकर इस कहानी को पूरा कर रहा है, तो कोई उंगली पकड़कर।हौसला देती मासूमों की यह 15 तस्वीरें सिस्टम से कुछ बुनियादी सवाल कर रही हैं.....

बागनदी बॉर्डर पर रविवार को भी दिनभर मजदूरों के प्रवेश का सिलसिला चलता रहा। भीड़ की वजह से बसें कम पड़ने लगी। गर्मी, थकान और बेबसी के बीच गोद में मासूम बिलखते बच्चे को पानी पिलाकर चुप कराता पिता।

खंडेला में ईंट भट्टे पर काम करने वाले श्रमिक का परिवार रविवार को उत्तर प्रदेश के लिए पैदल ही रवाना हो गया। बेटे को परेशानी न हो, इसके लिए श्रमिक ने जुगाड़नुमा साइकिल बनाई। उसमें बेटे को बिठाकर दंपती निकल पड़े अपने गांव के लिए। पूछा तो बोले- यहां रहकर क्या करें? अब तो रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। गांव जाने के सिवाय कोई चारा नहीं है। पता है- गांव तक पहुंचने का सफर आसान नहीं है, लेकिन जाना भी जरूरी है। हम तो कष्ट सह लेंगे, लेकिन बेटे को तकलीफ नहीं उठाने देंगे, इसलिए ये हाथगाड़ी बनाई,ताकि हमारे कलेजे के टुकड़े को पैदल न चलना पड़े।

मारेंगा चेकपोस्ट पर रविवार को दो साल की इस मासूम को कुछ खाने को मिला। उसने हाथ में रखा फल 9 महीने के भाई को थमाया और उसे दुलारने लगी। यह परिवार ओडिशा से पहुंचा था। दंपती, 4 बच्चे और खराब मोपेड, चार झोले। कुल इतनी संपत्ति के साथ अब्बास अली कर्नाटक के बीदर जाने निकला था।

प्रवासियों के लिए घर पहुंचने की जल्दी और अज्ञानता उनकी भागदौड़ का सबसे बड़ा कारण बना है। ऐसा नहीं कि प्रवासियों ने घर जाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं करवाई, लेकिन 10 से 15 दिन पहले रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद भी जब कोई मैसेज नहीं कि कौन सी तारीख को कहां से ट्रेन मिलेगीतो ये चल पड़ते हैं अपने किराए के घर छोड़कर।

लॉकडाउन, कर्फ्यू ये शब्द उन लोगों के लिए अब कोई मायने नहीं रखते, जिन लोगों ने अब अपना रोजगार छोड़ घरों को जाने काठान लिया है। जिंदगी ने इन प्रवासी श्रमिकों को अब ऐसे दिन दिखा दिए हैं कि कोरोनावायरस जैसी बड़ी मुसीबत भी इनके लिए कुछ नहीं है। चंडीगढ़ में कई साल से काम कर रहे श्रमिक अब बड़ी संख्या में घरों को लौटने लगे हैं। वहीं, इनके भूखे बच्चों को पुलिस के जवान खाने का सामन उपलब्ध करा रहे है।

चिलचिलाती धूप में महाराष्ट्र से सैकड़ों श्रमिक हर रोज महाराष्ट्र से यूपीजा रहे हैं। भोपाल बायपास पर मुंबई से निकले एक श्रमिक परिवार ने 10 महीने के छोटे बच्चे को दचका न लगे, इसलिए ऑटो में भी चादर से झूला बनाकर लिटा दिया। फोटो : शान बहादुर

बिलासपुर के धर्मपुरा गांव के राजेंद्र यादव और उनकी पत्नी ईश्वरी को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से आते समय उनके घर एक नन्ही परी ने जन्म लिया। रात के 2 बजे थे, राजेंद्र की पत्नी ईश्वरी बाई को लेबर पेन शुरू हुआ। महिला मजदूरों ने डिलीवरी कराई। लड़की हुई। बिलासपुर आने के बाद जच्चा और बच्चा दोनों को सिम्स में भर्ती कराया गया, जहां दोनों की स्थिति सामान्य है। वहीं दुर्ग केनवागढ़ के एक नट का पूरा परिवार दिल्ली से दुर्ग आ रही मजदूरों की ट्रेन में शनिवार की रात 8 बजे चढ़ा। रात 3 बजे के करीब सीमा ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची सुंदर थी, अच्छी थी, लेकिन एक घंटे बाद अचानक उसकी मौत हो गई। सीमा की सास 14 घंटे तक उस बच्ची के शव को गोद में रखकर सफर करती रही। दुर्ग में उन्हें गाड़ी से नवागढ़ पहुंचाया गया।

एबी रोड स्थित बिजासन घाट पर रविवार सुबह 8:15 बजे भीषण हादसा हुआ। मंदसौर से उडपी (कर्नाटक) जा रहा टैंकर ब्रेक फेल होने से बाइक पर पलट गया। हादसे में बाइक सवार निवाली के मजदूर दंपती और उनकी दो बेटियों की मौत हो गई, जबकि दो बेटियों को चोट आई। टैंकर के नीचे दबी दो बालिकाओं को पुलिस ने निकालकर अस्पताल भिजवाया। शेष चारों के शवों को घंटेभर की मशक्कत के बाद बाहर निकाला गया।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा श्रमिकों को चप्पल बांटे जाने की घोषणा के बाद राजधानी रायपुर में विधायक विकास उपाध्याय सुबह से ही मजदूरों की सेवा में लग गए और देर रात तक वे राहगीरों को चप्पल पहनाने के साथ ही भोजन भी कराते रहे। सीएम बघेल ने कहा था कि छत्तीसगढ़ पहुंचने वाले श्रमिकों किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होनी चाहिए। यहां इनके रहने और भोजन का इंतजाम किया गया है।

शनिवार की देर रात पलामू जिला प्रशासन का मानवीय चेहरा सामने आया। रायगढ़ महाराष्ट्र से जब विशेष ट्रेन श्रमिकों को लेकर डालटनगंज रेलवे स्टेशन पर करीब 2:30 बजे रात में पहुंची, उसी दौरान रूपा कुमारी नामक एक महिला प्रसव पीड़ा से तड़पने लगी। इसके बाद उसका पति राहुल ठाकुर परेशान हो गया। वह कुछ कर पाता इससे पहले ही प्रशासन की टीम ने वहां पहुंचकर उसे सांत्वना दी और उसे उसकी पत्नी के साथ पीएमसीएच एंबुलेंस से भेज दिया गया। पीएमसीएच में प्रतिनियुक्त सिस्टर चंचला कुमारी ने प्रशासन के सूचना पर सभी तैयारी कर ली थी। महिला को पहुंचते ही उसे डॉक्टर कादरी के दिशा निर्देश के अनुरूप सुरक्षित प्रसव कराने में सफल हुई।
सिस्टर चंचला ने उसे पूरी तन्मयता के साथ सेवा की और खुद चाय बनाकर पिलाई। यह सब देख महिला रूपा कुमारी को सहज विश्वास नहीं हुआ कि एक सरकारी अस्पताल में उसे यह सब सुविधा नसीब होगी।

प्रशासन की चौकसी के तमाम दावों के बावजूद प्रवासी मजदूर बॉर्डर तक पहुंच गए। गाजीपुर में रोके जाने पर रविवार को हंगामा किया। वहीं तीन दिनों तक पैदल चलकर यूपी बॉर्डर पहुंचा प्रवासी मजदूर सत्येंद्र अब यूपी में प्रवेश करने का इंतजार कर रहा है। इस दौरान वह अपनी बेटी के पैर की मालिश करता हुआ।

रेहड़ीके जरिए अपने घर पहुंचने की कोशिश करते हुए लोगों को प्रशासन ने धैर्य बनाएं रखने की अपील की और ऐसे ही 70 प्रवासियों को प्रशासन ने नसिर्फ रोका बल्कि उनके खाने-पीने और ठहरने का भी प्रबंध किया।

कोरोना काल में दूसरे राज्यों के लोगों का अपने घरों में जाने का क्रम जारी है। 2 मई से लेकर अब तक 7.30 लाख लोगों ने अपने घरों में जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया है। वहीं ये लोगों ने जरूरत के सारे सामान समेत अपने परिवार के साथ गुरुनानक स्टेडियम में अपनी बारी का इस भीषण गर्मी में इंतजार कर रहे हैं। इस दौरान एक बच्चा अपने छोटे भाई को संभालता हुआ।

पंजाब, राजस्थान और हरियाणा से लगातार अपने घरों को लौट रहे प्रवासी भूख-प्यास और थकान से बेहाल। छोटे बच्चे तपती दोपहरी में बेजान से हो गए। पहली तस्वीर में एक मां अपनी बच्ची को खाना खिलाती हुई। वहीं दूसरी तस्वीर में परिजन अपने बच्चों को गोद में लेकर अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए।



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पराक्रम देश के सबसे कम उम्र के बच्चों में से है, जिसने काेरोना काे हराया मैं पराक्रम हूं। 26 मार्च को मुंबई के एक अस्पताल में मेरा जन्म हुआ। तब एक चूक के कारण मैं कोरोनावायरस की चपेट में आ गया। लंबे संघर्ष के बाद मेरी मम्मी, पापा, डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों ने मुझे बचाया है। मेरी आंखों में जिंदगी की चमक है, क्योंकि स्वास्थ्यकर्मियों और मेरे अपनों ने सोशल डिस्टेंसिंग और सतर्कता की अपनी जिम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाई।


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